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________________ की ओर उत्साह से प्रवृत्त हुए थे। तभी श्रीमद् ने 'अभिधान राजेन्द्र' विशद कोश के निर्माण की पहल कर जैन धर्मग्रन्थों के साथ भारतीय प्राचीन प्राकृत भाषाओं के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया। इस अभतपूर्व-अद्वितीय महाकोश के प्रकाशन से प्रेरणा पाकर बाद में बंगला-हिन्दी-गुजराती-मराठी-संस्कृत-अर्द्धमागधी प्रभृति भाषाओं के कोशों के संकलन कार्यों में प्रगति हई। जिसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से 'अभिधान राजेन्द्र महाकोश' की सहाय्य प्रायः सभी में अपरिहार्य हुई। कोश-निर्माण के उस अभियान में जिन कृतियों का निर्माण हुआ उनका विवरण यहाँ उद्धृत करना अप्रासंगिक न होगा। 'अभिधान राजेन्द्र' कोश के अनन्तर प्रान्तीय भाषाओं में सर्वप्रथम कोश-निर्माण का श्रेय एक पारसी विद्वान् को है, जिन्होंने अंग्रेजी-गुजराती लघुकोश को सन् १९०५ के करीब तैयार किया था। इसके पश्चात् सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री नगेन्द्रनाथ बसु ने 'हिन्दी विश्व कोश' एवं 'बंगला विश्वकोश' के सम्पादन का कार्य सन् १९१५ में आरम्भ किया जो आंशिक रूप में मासिक छपता रहा। इन दोनों कोशों के निर्माण-काल में भारत में छापखानों का प्रचलन हो चुका था। श्री बसु महोदय रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्य थे। इन दोनों कोशों के निर्माण में विख्यात वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु व पं. हरप्रसाद शास्त्री प्रमुख पचास से अधिक सलाहकार सदस्यगण और सम्पादकों का सहयोग प्राप्त किया गया था। सतत् तीस वर्षो तक इन कोशों का निर्माण कार्य चलता रहा था। 'संस्कृत महाकोश' (वाचस्पत्यभिधान) का निर्माण सन् १९२९ से प्रारम्भ हुआ जो सन् १९४० में पूर्ण किया जा सका था। इसके लेखक श्री तारानाथ वाचस्पति थे। 'संस्कृत कल्पद्रुमकोश' श्री राधाकान्त देव द्वारा तैयार किया गया था। गुजराती विद्यापीठ के सम्पादक-मण्डल द्वारा गुजराती सार्थ जोडणीकोश' की प्रथम आवृत्ति तैयार की जाकर सन् १९२८ में प्रकाशित हुई। नागरी प्रचारिणी सभा बनारस द्वारा 'बृहत् हिन्दी शब्द सागर' कोश (सात भाग) का निर्माण अनेक विद्वान् सम्पादकों द्वारा सन् १९०९ से सन् १९३० तक पूरा किया जा सका था । इन्हीं दिनों पं. मुनि रत्नचन्द्रजी शतावधानी महाराज द्वारा 'जैनागम शब्द' प्राकृत भाषा का लघुकोश तैयार किया गया जो सन् १९२६ में प्रकाशित है। इन्हीं महाराज द्वारा अर्द्धमागधीकोश (चार भाग) तैयार किये गये। इसके पश्चात् देश में अंग्रेजी एवं प्रादेशिक भाषाओं का व्यापक अध्ययन होने लगा। विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुरूप सभी भाषाओं में अनेक शब्दकोशों के प्रकाशन हुए; लेकिन इस बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में निम्न कोशों का प्रकाशन मुख्य रूप से गिना जा सकता है जिनका उपयोग जैन शास्त्रों के अध्ययन में विशेष सहायक है १. पाइय सद्द महण्णवो : संपादक-सेठ हरगोविंददास; प्रकाशक प्राकृत __ टेक्स्ट सोसायटी। २. जैन लक्षणावलि-कोश : संपादक बालचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री; वीर सेवा मन्दिर । ३. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (चार भाग) : श्री जिनेन्द्र वर्णी; भारतीय ज्ञानपीठ । तीर्थंकर : जून १९७५/१३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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