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कि धनजय के पास शब्दों की कमी नहीं है। वह ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जो शब्द-सम्पत्ति है, उस सभी को जानता है । जो शब्द-शब्द को मोतियों के समान चुनते हैं वे गम्भीर शास्त्र-समुद्रों में गहरी डुबकी लगाने वाले गोताखोर होते हैं। वे ही वाङमय-प्रासाद को सँवारते हैं, भारती-मन्दिर में अर्चना के पुष्पोपहार समर्पित करते हैं। पर्यटक शब्द
भौतिक विज्ञान की सहायता से आज शब्द-शक्ति नये-नये रूपों में लोकव्यवहार का साधन बनी है। 'डाक' विभाग की कृपा से शब्द देश-विदेशों में पर्यटन करने लगे हैं। 'तार' से उड़ते हैं, टेलीप्रिंटर पर साकार होते हैं। संगीत के तारों पर थिरकते हैं। सभी ज्वालामुखियों के विस्फोट तक सीमित थे अब अणु-आयुधों में बन्द हैं और मानव की किसी भी क्षण की गयी अबुद्धिमत्तापूर्ण कार्यवाही की प्रतीक्षा में हैं। काकातोआ और विष वियस से अधिक भीषण उद्घोष करने वाले 'धड़ाके' इन बमों में अकुला रहे हैं। जिनवाणी अर्थात् वाक्अमृत
_ 'वेधा जिनेन्द्रवचोऽमृतम्'-भगवान् जिनेन्द्र की वाणी को अमृत बताया गया है । जो अपने अस्तित्व से लोक में जीवन संचारित करे, वह वाक् अमृत ही है। यह शब्द, शब्दमय वाक् प्राणिमात्र में बन्धुत्व स्थापन करने वाली है। इस भाषा के अमृतपात्र में विश्व के रसपिपासु अधर डूबे हुए हैं।
शब्द तारे, शब्द सहारे
भवानीप्रसाद मिश्र
फंस जाओगे मैं फँस जाऊँगा
और मेरे सहारे तुम.
और तुम्हारे तारे तारे और सहारे मेरे और तुम्हारे शब्द हैं और शब्दों के समूह हैं
साफ-सुथरे शब्दों के बल पर तुम पुकारोगे तो मैं आऊँगा मैं पुकारूँगा तो तुम आओगे तुम मुझे सहारे की तरह मैं तुम्हें तारे की तरह गाऊँग।।
के
बिना साफ-सुथरे शब्दों तारे और सहारे केवल चक्रव्यूह हैं जिनमें तुम
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१२५
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