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कलह उत्पन्न हो गया । लिपि-रचना के पूर्वसमय में 'उक्ति' को प्रतिष्ठा प्राप्त थी और महान् उपदेशों को, आचार्यों के आशय को उदाहरण में प्रस्तुत करते समय 'उक्तम्'-जैसा कि अमुक ने कहा है, कहकर अपने भाषण को समर्थन दिया जाता था किन्तु लिखने की शक्ति मिलने पर 'मौखिक' का महत्त्व समाप्त प्रायः हो गया और जिह्वा की प्रमाणवत्ता हाथों को प्राप्त हो गयी। हाथ से लिखा हुआ प्रामाणिक माना जाने लगा और मुख से कहा हुआ लिपिरूप में प्रत्यक्ष (आँखों के समक्ष) न होने से अविश्वस्य हो गया । वर्ण ब्राह्मी, अंक सुन्दरी
___ जैनमत के अनुसार भगवान् आदिनाथ ने अपनी ब्राह्मी तथा सुन्दरी नामक पुत्रियों को वर्ण और अंक-विद्या का उपदेश दिया था; इसीलिए भारतीय लिपि तथा भाषा को ब्राह्मी और भारती कहा जाता है। वैदिकों के अनुसार ब्रह्म ने चिन्तन किया-‘एकोऽहं बहस्याम्' 'मैं एक हूँ और अनेक हो जाऊँ'-इसी इच्छाशक्ति ने शब्दरूप में प्रथम जन्म लिया अतः वह ब्रह्मभाषित होने से ब्राह्मी कही गयी । भाषाशास्त्रियों का मत है कि मनुष्य आरम्भिक अवस्था में छोटी-छोटी सामान्य ध्वनियों से काम चलाता था। जैसे किसी को आह्वान करना (पुकारना) हुआ तो 'ए' 'ओ' कहता था। पानी की इच्छा हुई तो 'क' कहता था, आकाश का संकेत करना होता तो 'ख' कह देता था। आश्चर्य व्यक्त करने के लिए 'ई' 'उ' पर्याप्त था। इस प्रकार आरम्भ में वह लघुतम वर्णध्वनियों से अभिव्यक्ति के मार्ग पर बढ़ रहा था। संस्कृत भाषा में ये एकाक्षर शब्द आज भी मूल अर्थ में सुरक्षित हैं। उस प्राचीनतम समय का 'ऐ-ओ' अयि तथा आर्य बन गये हैं। इसी प्रकार 'च' 'न''ह' 'र''ल'-इत्यादि एकाक्षर शब्दों को लिया जा सकता है। कालान्तर में शब्द एकाक्षर से द्वयक्षर, व्यक्षर और बह्वक्षर बना । तब मिश्र, यौगिक आदि अनेक ध्वनियों का विकास हुआ । अतिपूर्वकालीन एकानुबन्ध
___ आज मानवमात्र के पास एक न एक भाषा है जिसमें वह अपनी अभिव्यक्ति को मूर्त करता है। इन ऊपर से पृथक् प्रतीयमान भाषाओं के उपलब्धि-स्रोत अधिकांशतः अपने मानव-परिवार-सामीप्य की सूचना दे रहे हैं। भाषाओं का यह साम्य उनके आभ्यन्तर जीवन पर है। दिन, वार, पक्ष, मास, वर्ष, संख्या तथा इसी प्रकार के अन्य साम्य विश्वभर में हैं। सर्वत्र वर्ष-गणना के दिनों में, मास-संख्या में, अंकों की शतकपरम्परा में किसी अतिपूर्वकालीन एकानुबन्ध का संकेत है। यह एकानुबन्ध सर्वप्रथम किस भाषा का ऋणी है, यह निश्चय से नहीं कहा जा सकता। तथापि आधुनिक 'भाषा-विज्ञान' के मनीषियों ने यह स्वीकार किया है कि 'ऋग्वेद' सर्वप्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है और उसी की भाषा प्राचीनतम है। यह भी भाषाविदों का अभिमत है कि सम्पूर्ण मानव-परिवार कभी एक भाषाभाषी था
तीर्थंकर : जून १९७५/११८
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