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श्रीमद् राजेन्द्रसूरि वि. सं. १९३२ के उत्तरार्थ में जालोर पधारे थे। उनसे इन जिनालयों की दुर्दशा नहीं देखी गयी। सं. १९२३ का वर्षाकाल भी जालोर में करने का निश्चय किया गया। श्रीमद् राजेन्द्रसूरि के दृढ़ निश्चय, दीर्घकालीन तपस्या और तत्परता के परिणामस्वरूप तत्कालीन राजा ने स्वर्णगिरि के मन्दिर जैनों को सौंप दिये। श्रीमद् राजेन्द्रसूरि ने इन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया और सं. १९३३ में महामहोत्सव पूर्वक प्रतिष्ठा-कार्य भी सम्पन्न किया। ४. तालनपुर तीर्थ
इस स्थल के तुंगीयापुर, तुंगीयापत्तन और तारन (तालन) पुर-ये तीन नाम हैं। यह तीर्थ अलीराजपुर से कुक्षी (धार) जाने वाली सड़क की दाहिनी ओर स्थित है।
यह तीर्थ बहुत प्राचीन माना जाता है। सं. १९१६ में एक भिलाले के खेत से श्री आदिनाथ बिम्ब आदि २५ प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं, जिन्हें समीपस्थ कुक्षी नगर के जैन श्रीसंघ ने विशाल सौधशिखरी जिनालय बनवाकर विराजमान की। प्रतिमाओं की बनावट से ज्ञात होता है कि ये प्रतिमाएँ लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन हैं।
___यहाँ दो मन्दिर हैं। सौधशिखरी जिनालय के पास ही श्री गौड़ी पार्श्वनाथ का मन्दिर है। इस प्रतिमा को सं. १९५० में महोत्सवपूर्वक श्रीमद् राजेन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठित की। ५. श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
धार से पश्चिम में १४ कोस दूर माही नदी के दाहिने तट पर राजगढ़ नगर है, यहाँ से ठीक एक मील दूर पश्चिम में श्री मोहनखेड़ा तीर्थ है। यह तीर्थ सिद्धाचल शिव-वन्दनार्थ संस्थापित किया गया है। भगवान आदिनाथ के विशाल जिनालय की प्रतिष्ठा सं. १९४० में श्रीमद् राजेन्द्रसूरि द्वारा महोत्सवपूर्वक की गयी। इस मन्दिर के मूलनायक की प्रतिमा श्री आदिनाथ भगवान की है, जो सवा हाथ बड़ी श्वेत वर्ण की है।
यहीं श्रीमद्राजेन्द्रसूरि की समाधि है, जिसमें उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी है। मन्दिर की भित्तियों पर उनका संपूर्ण जीवन उत्कोर्ण करने की योजना भी है।
इस तीर्थ के मुख्य मन्दिर का पुननिर्माण करने की योजना वर्तमानाचार्य श्रीमद् विजयविद्याचन्द्रसूरि की प्रेरणा से तैयार की गयी है, जिसके अनुसार लगभग २५ लाख रुपये व्यय किये जायेंगे । शिलान्यास विधिवत् १९ जून, ७५ को श्रीमद्विजयविद्याचन्द्र सूरि ने संपन्न की ।
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/९९
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