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________________ प्रेरणा से यह विशालकाय भव्य और मनोहर मन्दिर बनवाया है। प्रतिष्ठा-महोत्सव सं. १९५९ की वैशाख शु. ३० को श्रीमद् राजेन्द्रसूरि के कर-कमलों से सम्पन्न हुआ। २. श्री माण्डवा तीर्थ माण्डवपुर नामक यह ग्राम जोधपुर से राणीखेड़ा जाने वाली रेल्वे के मोदरा स्टेशन से २२ मील दूर उत्तर-पश्चिम में चारों ओर रेगिस्तान से घिरा हुआ है। वि. सं. ७ वीं शताब्दी में बेसाला कस्बे में एक विशाल सौधशिखरी जिनालय था। नगर पर मेमन डाकुओं के नियमित हमले से लोग अन्यत्र जा बसे । डाकुओं ने मन्दिर तोड़ डाला, लेकिन प्रतिमा को किसी प्रकार बचा लिया गया। जन-श्रुति के अनुसार कोतमा के निवासी पालजी प्रतिमाजी को एक शकट में विराजमान कर ले जा रहे थे कि शकट भांडवा में जहाँ वर्तमान में चैत्य है, आकर रुक गया। अनेकविध प्रयत्न करने पर भी जब गाड़ी नहीं चली तो सब निराश हो गये। रात्रि में अर्द्ध जागृतावस्था में पालजी को स्वप्न जाया कि प्रतिमा को इसी स्थान पर चैत्य बनवाकर उसमें विराजमान कर दो। स्वप्नानुसार पालजी संघवी ने सं. १२३३ में यह मन्दिर निर्माण कर प्रतिमा महोत्सव पूर्वक विराजमान कर दी। श्रीमद् राजेन्द्रसूरि जब आहोर से संवत् १९५५ मैं इधर पधारे, तो समीपवर्ती ग्रामों के निवासी श्रीसंघ ने उक्त प्रतिमा को यहाँ से उठाकर अन्यत्र विराजमान करने की प्रार्थना की; लेकिन श्रीमद् राजेन्द्रसूरि ने प्रतिमा को यहाँ से नहीं उठाने और इसी चैत्य को विधिपूर्वक पुनरुद्धार कार्य सम्पन्न करने को कहा। उन्होंने सारी पट्टी में भ्रमण कर जीर्णोद्धार की प्रेरणा दी। फलस्वरूप विलम्ब से इसकी प्रतिष्ठा का महा-महोत्सव सं. २०१० में सम्पन्न हो सका। वर्तमान में मन्दिर के तीनों ओर विशालकाय धर्मशाला बनी हुई है। मन्दिर में मूलनायकजी के दोनों ओर की सब प्रतिमाजी श्रीमद् राजेन्द्रसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हैं। ३. श्री स्वर्णगिरि तीर्थ, जालोर यह प्राचीन तीर्थ जोधपुर से राणीवाड़ा जाने वाली रेल्वे के जालोर स्टेशन के समीप स्वर्णगिरि नामक प्रख्यात पर्वत पर स्थित है। नीचे नगर में प्राचीनअर्वाचीन १३ मन्दिर हैं। पर्वत पर किले में तीन प्राचीन और दो नूतन भव्य जिन मन्दिर हैं। प्राचीन चैत्य यक्षवसति (श्री महावीर मन्दिर), अष्टापदावतार (चौमुख) और कुमार विहार (पार्श्वनाथ चैत्य) हैं। कालान्तर में इन सब मन्दिरों में राजकीय कर्मचारियों ने राजकीय युद्धसामग्री आदि भर कर इनके चारों ओर काँटे लगा दिये थे। विहार करते हुए तीर्थकर : जून १९७५/९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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