________________ अनुसन्धान-५५ व्यंग्य अर्थ धरावतुं काव्य ज ध्वनि कहेवाय छे;* जो काव्यमांथी नीकळतो व्यंग्य अर्थ, काव्यना वाच्यार्थनी अपेक्षाओ वधारे चमत्कृतिसभर होय तो. अने जो काव्यना पोताना वाच्य अर्थ करतां व्यंग्य अर्थ नबळो होय, तो ओ व्यंग्य अर्थ 'गौण' गणाय छे. अने ओवो गौण व्यंग्य अर्थ धरावतुं काव्य 'ध्वनिकाव्य' नथी गणातुं. परन्तु जो व्यंग्यार्थ, वाच्यार्थ करतां सबळ होय, तो ओ व्यंग्यार्थ 'प्रधान' लेखाय छे, अने अर्बु प्रधानीभूत व्यंग्यार्थ धरावतुं काव्य 'ध्वनिकाव्य' कहेवाय छे. आ थइ काव्यने ज ध्वनि तरीके ओळखनारी साहित्याचार्योनी परम्पराने सम्मत व्यवस्था. आथी जुदा पडीने, आचार्य पोते व्यंग्य अर्थने ज ध्वनि मानवाना पक्षमा छे.' आ पक्षमां व्यंग्यना मुख्य अने गौण –अवा भेद ज नथी पाडता, माटे तमाम व्यंग्यार्थ 'ध्वनि' कहेवाय छे. अने आचार्ये ते प्रमाणे ज निरूपण कर्यु छे. भूमिकालेखक नथी मम्मटाचार्यना मतना हार्दने बराबर पकडी शक्या, के नथी बे परम्परा वच्चेना भेदने पकडी शक्या अने उपरथी हेमचन्द्राचार्यने शास्त्रज्ञान नहोतुं ओम कहे छे ! आ तो अक-बे उदाहरणो दर्शाव्यां छे. समग्र भूमिकानो विगते-निरांते अभ्यास करवामां आवे तो आवां अनेक स्थळो मळी आवे के जेमां डो. नान्दीओ अयोग्य रीते हेमचन्द्राचार्यनी साहित्यशास्त्र लखवानी सज्जता सामे सवाल उठाव्या होय. समग्रपणे आ अनुवाद-ग्रन्थ विषे विचारतां अवू लागे छे के आ अनुवाद काव्यानुशासननी उपादेयता वधारवा माटे नहीं, पण आचार्यनी आ ग्रन्थ माटेनी अयोग्यताने दर्शाववा खातर ज करवामां आव्यो छे. अने आचार्यश्रीनी प्रतिभानुं खण्डन करतां तेमज अनुवादनी अनेक गम्भीर भूलोथी भरेला आ ग्रन्थ माटे, ग्रन्थमाळाना प्रधान सम्पादक डो. नान्दीनो ऋणस्वीकार करे छे अने पोतानी ग्रन्थश्रेणीमा प्रकाशित करतां गौरव अनुभवे छे; तेनाथी अटलुं ज स्पष्ट थाय छे के प्रधान सम्पादके आ भूमिका अने अनुवादनुं प्रकाशन करतां अगाउ तेने जोइ जवानी जवाबदारीनो निर्वाह कर्यो नथी. - मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय इदमुत्तममतिशयिनि व्यङ्ग्ये वाच्याद् ध्वनिर्बुधैः कथितः // 4 // __अतादृशि गुणीभूतव्यङ्ग्यं व्यङ्ग्ये तु मध्यमम् / (काव्यप्रकाश) + स च (-व्यङ्ग्योऽर्थः) ध्वन्यते-द्योत्यते इति ध्वनिरिति पूर्वाचायः सञ्जितः-का.शा.१.१९ टीका