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यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या पौद्गलिक कर्म में कोई फलदानशक्ति है, अथवा वह अतीतकाल में जीव के द्वारा की गई कषायों की तीव्रता-मन्दता को मापने वाला कोई यन्त्र मात्र है, कुछ वैसे ही, जैसे कि थर्मामीटर भारीर में बुखार की तीव्रता-मन्दता को मापने वाला एक यन्त्र है? इस प्रश्न का उत्तर कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझने में सरल रहेगा। जैसे कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण शक्ति है, जो कोई भी पौद्गलिक पदार्थ उस शक्ति के दायरे के भीतर होता है, उसे वह अपनी ओर खींचती है; ऐसे ही, मोहनीय कर्म में भी संसारी, कर्मबद्ध आत्मा को रागद्वेषरूप परिणमन की ओर खींचने की शक्ति है। ___ अथवा, जैसे चुम्बक में लौहपदार्थ को अपनी ओर खींचने की शक्ति है। उधर, लौहपदार्थ में भी अपने वज़न के अनुपात में उस चुम्बकीय आकर्षणशक्ति की विरोधिनी एक शक्ति है। अब, चुम्बकीय शक्ति की अपेक्षा लौहपिण्ड की विरोधिनी शक्ति यदि कम है तो लोहे को चुम्बक की ओर खिंचना पड़ेगा। दूसरी ओर, चुम्बकीय शक्ति यदि तुलना में कम है तो चुम्बक लोहे को अपनी ओर खींचने में असमर्थ रहेगा। ___ अथवा, मान लीजिये कि एक आदमी किसी दूसरे आदमी का हाथ पकड़ कर खींच रहा है। यहाँ, दो संभावनाएं बनती हैं। पहली यह कि दूसरा आदमी खुद भी उधर ही जाना चाहता हो – तब तो दोनों की शक्ति जुड़कर, कुल शक्ति दुगुनी हो जाएगी। दूसरी संभावना यह है कि दूसरा आदमी उधर नहीं जाना चाहता हो, बल्कि पहले आदमी के खिंचाव से विपरीत दिशा में अपनी शक्ति को लगाता हो – तब गणित के नियमानुसार, पहले आदमी की खिंचाव-शक्ति में से दूसरे आदमी की विरोधी-शक्ति को घटाना पड़ेगा। यहाँ, पुनः दो