SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो । नफा रास्त हो, किसी का शोषण न हो, सरकारी टॅक्स सही तरीके से भरे, पर्यावरण की हानि न हो - इस प्रकार के पथ्य रखना ही आधुनिक काल में उचित है । निषिद्ध व्यवसायों की सारणी के बजाय नीतिमूल्यों की सारणी उपयोजित की जाय तो सही अर्थ में अहिंसा का पालन होगा । (५) जैन तत्त्वज्ञान में कालचक्र और बढती दुष्प्रवृत्तियाँ : जैन और हिन्दु कालचक्र की संकल्पना में थोडा फर्क है लेकिन दोनों एकवाक्यता से कहते हैं कि प्रस्तुत कालचक्र में दुष्प्रवृत्तियाँ दिन-ब-दिन बढनेवाली ही है । जैन मत के अनुसार, प्रस्तुत काल में पंचम आरा है । उसका नाम 'दुषमा' है । आगामी काल ‘दुषमादुषमा' है । इस प्रकार पर्यावरण के सन्तुलन का भी न्हास होगा और दुष्प्रवृत्तियाँ भी बढ़ेगी । हिन्दु अवधारणा के अनुसार, यह चौथा कलियुग है और कल्कि अवतार के बावजूद भी प्रलय से ही इस युग का अन्त होनेवाला है । __ जैन ग्रन्थ सूत्रकृतांग से स्पष्ट होता है कि किसी भी काल में पापपुण्य, सदाचार-दुराचार दोनों भी रहनेवाले हैं । सूत्रकृतांग में बारह मुद्दों में गुनहगारी-विश्व का सजीव चित्रण पाया जाता है । दूरदर्शन पर प्रसृत 'सत्यमेव जयते' कार्यक्रम के सभी विषय, सूत्रकृतांग में अन्तर्भूत किये हुए दिखायी देते हैं । मतलब यह हुआ कि दुष्प्रवृत्तियाँ पुराने जमाने में भी थी, आज भी हैं और कल भी रहेंगी। ___ बढती हुई दुष्प्रवृत्तियों के अनेक आयाम हैं और अनेक कारण हैं । जैसे कि - बढती हुई आबादी, आर्थिक विषमता, जीवनसंघर्ष, बेरोजगारी, दैनंदिन जीवन की गतिमानता, गरीबी, अज्ञान, धार्मिक धारणाएँ, विविध अस्मिताएँ, व्यक्तिस्वातन्त्र्यवादी दृष्टिकोण, सामाजिक विषमता और मोह-लोभ-लालच आदि भावनिक कारण इत्यादि । स्वाभाविक है कि जब तक इन कारणों का निरास नहीं होगा तब तक विश्वशान्ति कैसे निर्माण होगी ? ये सब कारण दूर करना, किसी भी युगपुरुष-अवतार-मसीहा आदि के बस की बात नहीं है। जब जब अवतारों ने धर्मसंस्थापना का प्रयत्न किया तब तब उन्होंने शस्त्र और हिंसा का ही आधार लिया । यद्यपि महावीर पूरे अहिंसक थे तथापि उपदेश के द्वारा सभी दुष्प्रवृत्तियों का निर्मूलन करना, उनके वश में नहीं था । अन्यथा महावीरकालीन जैन इतिहास में 'रथमुशलसंग्राम' और 'महाशिलाकण्टक-संग्राम' जैसे युद्धों का उल्लेख नहीं पाया जाता । इतिहास के समालोचन के द्वारा यही तथ्य सामने आता है कि विश्वशान्ति एक आदर्शवादी संकल्पनामात्र है। उसको वास्तव में लाना सर्वस्वी मानवी प्रयत्न के दायरे के बाहर की बात है।
SR No.212296
Book TitleAadhunik kal me Ahimsa Tattva ke Upyojan ki Maryadaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaumudi Baldota
PublisherKaumudi Baldota
Publication Year2013
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy