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________________ (४) हिंसाधार व्यवसायों का निषेध : जैन श्रावकों के लिए पन्द्रह निषिद्ध व्यवसायों की सारणी ग्रान्थिक रूप में उपासकदशा एवं आवश्यक सूत्र में पायी जाती है । श्वेताम्बरीय श्रावकों के लिए बनाये हुए षडावश्यक के पाठ में पन्द्रह निषिद्ध व्यवसाय गिनाये जाते हैं । 'ये सभी व्यवसाय हिंसाप्रधान प्रवृत्तियों पर आधारित हैं' - यह विचार इसकी पृष्ठभूमि है । अगर इन सब व्यवसायों की चिकित्सक दृष्टि से समीक्षा करें तो आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कुछ नये तथ्य सामने आते हैं। इन पन्द्रह में से चार-पाँच व्यवसाय ऐसे हैं कि जिन्हें हम नैतिकता की लोकव्यापी धारणा के अनुसार सर्वथा वर्ज्य मान सकते हैं। हमें मालूम है कि हाथीदन्त का व्यवसाय, विष और नशीली पदार्थों का व्यापार, लैंगिक शोषण के तौर पर बालिका और स्त्रियों की विक्री, सभी तरह का Human Trafficking ये सब व्यवसाय किसी भी देश में किसी भी काल में वांछनीय नहीं हैं । लेकिन कोयला बनाना, भाड में ईंटें I पकाना, द्विदल वस्तु से दाल बनाना, गेहूँ आदि से आटा आदि बनाना, कुआँ और सरोवर का निर्माण करना, यातायात के साधन भाडे पर देना, यातायात के साधन बनाना, दूध-दही घृत तेल का विक्रय करना, इक्षुरसयन्त्र और जलयन्त्र आदि की निर्मिति और विक्रय करना आदि अनेक व्यवसाय आज के परिप्रेक्ष्य में निषिद्ध नहीं माने जा सकते। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कई व्यापार सामाजिक उच्च-नीचता की अवधारणा पर बने हुए हैं। जब जाति-जाति में उच्चता नहीं रही है तब व्यवसायों में भी नहीं रहनी चाहिए । इनमें कई व्यवसाय ऐसे हैं कि जैन वैश्य वर्ग भी इन्हें मध्ययुगीन काल से करता आया है । दूसरी बात यह है कि कोयला बनाना, तेल निकालना, औषधी बनाना आदि व्यवसाय निषिद्ध माने हैं। जैन गृहस्थ को कोयला (आधुनिक काल में रॉकेल, गॅस इत्यादि), तेल आदि का उपयोग रसोई बनाने के लिए तो करना ही पडता है। इससे यह निष्पन्न होता है कि अगर कोयला, तेल आदि दूसरों ने बनवाया तो जैन श्रावक वह चीजें उपयोग में ला सकते हैं । मतलब यह हुआ कि उसमें निहित हिंसा के भागीदार हम नहीं बनना चाहते । दूसरों द्वारा बनायी गयी चीजों का अगर हम इस्तेमाल कर सकते हैं तो खुद को उन चीजों को बनाने का या बेचने का निषेध तर्कसंगत नहीं लगता । रोजगार निर्मिति के प्राधान्य देनेवाले आधुनिक काल में किसी भी न्याय्य व्यवसाय को निषिद्ध नहीं माना जा सकता । आवश्यकता है कि उसमें professional ethics याने व्यावसायिक नीतिमत्ता का पालन 8
SR No.212296
Book TitleAadhunik kal me Ahimsa Tattva ke Upyojan ki Maryadaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaumudi Baldota
PublisherKaumudi Baldota
Publication Year2013
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
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