Book Title: Aadhunik kal me Ahimsa Tattva ke Upyojan ki Maryadaye
Author(s): Kaumudi Baldota
Publisher: Kaumudi Baldota

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________________ आधुनिक काल में 'अहिंसा' तत्त्व के उपयोजन की मर्यादाएँ (जैन तत्त्वज्ञान एवं आचार के विशेष सन्दर्भ में) ('विश्वशान्ति एवं अहिंसा' इस विषय पर, कर्नाटक विश्वविद्यालय (धारवाड) के संस्कृत विभागद्वारा आयोजित राष्ट्रीय चर्चासत्र में (२२-२३ फेब्रुवारी २०१३) प्रस्तुत किया जानेवाला शोधनिबन्ध) पत्रव्यवहार के लिए पता : डॉ. कौमुदी बलदोटा २०३, 'बी' बिल्डींग, गीतगोविंद हौसिंग सोसायटी, महर्षिनगर, पुणे ४११०३७ दूरध्वनि : (०२०) २४२६०६६३ मोबाईल क्र. - ९१५८९१०३०० ई-मेल : sunil_baldota@rediffmail.com दि. १२/०२/२०१३ शोधछात्रा : डॉ. कौमुदी बलदोटा, नानावटी फेलो, जैन अध्यासन, पुणे विद्यापीठ विषय और मार्गदर्शन : डॉ. नलिनी जोशी, प्राध्यापिका, जैन अध्यासन, पुणे विद्यापीठ शोधनिबन्ध का शीर्षक : पूरे विश्व में शान्ति प्रस्थापित करने के लिए अहिंसा तत्त्व की महत्ता सर्वोपरि है, इसके बारे में मतभेद होने की तनिक भी गुंजाईश नहीं है । अगर भविष्यत् काल में समूचे विश्व का अगर एक ही नीतिप्रधान धर्म प्रस्थापित होगा, फिर भी उसमें अहिंसा का स्थान अक्षुण्ण ही रहेगा । भारत में उद्भूत सभी धर्म-सम्प्रदायों में अहिंसा का स्थान हमेशा अग्रगण्य ही रहा है । वैदिक अगर हिन्दु दर्शन -महाभारत-उसमें अन्तर्भूत भगवद्गीता तथा पुराणों तक के सभी साहित्य में अहिंसा के गरिमा की ध्वनि गूंज रही है । गौतम बुद्ध द्वारा प्रचलित दया-करुणापर आधारित पंचशील तत्त्व को प्रचलित धर्मनिरपेक्ष भारतीय राज्यघटना में भी मार्गदर्शक तत्त्वों के रूप में स्थान दिया गया है । अहिंसा की व्याख्या-लक्षण-स्वरूप-प्रकार-उपप्रकार आदि सूक्ष्मातिसूक्ष्म याने कि बाल के खाल निकालने तक की चर्चा अगर हमें देखनी है तो जैन परम्परा के कई ग्रन्थ इसपर प्रकाश डालने में अति तत्पर है । आचार-विचार-व्यवहार-व्यापार-नीतिमत्ता-धार्मिकताआध्यात्मिकता आदि कई दृष्टियों से जैनों ने अहिंसा पर और साथ ही साथ हिंसा के अन्तरंग और बाह्यस्वरूप पर विस्तृत बयान प्रस्तुत किये हैं । आचारांग, सूत्रकृतांग जैसे प्राचीन अर्धमागधी ग्रन्थ, भगवती आराधना जैसे शौरसेनी भाषा में निबद्ध ग्रन्थ एवं पुरुषार्थसिद्ध्युपाय जैसे संस्कृत ग्रन्थों में, जैनियों ने हिंसा

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