Book Title: Aadhunik kal me Ahimsa Tattva ke Upyojan ki Maryadaye Author(s): Kaumudi Baldota Publisher: Kaumudi Baldota View full book textPage 3
________________ I जीवों की हत्या जैन दृष्टि से सर्वथा वर्जनीय है । पहले पाँच जो जीने के लिए अत्यावश्यक है उनकी भी हमें 'बिना प्रयोजन - जरूरत से ज्यादा या असावधानी' के कारण हत्या नहीं करनी चाहिए। उन सबका कम से कम उपयोग करके उनकी रक्षा भी करनी चाहिए । I I प्रस्तुत किया हुआ आदर्शभूत तत्त्व निःसंशय प्रशंसनीय है तथापि ये सब निसर्गनिर्मित स्रोत, बढती आबादी के कारण और लालसा के कारण भी ज्यादा से ज्यादा कुचलाये जाने लगे हैं । कोयले की खानें खनना, अनिवार्य हो गया है। पानी का कितना भी कम प्रयोग करें भविष्यत् काल में पानी के निमित्त होनेवाले युद्ध अटल हैं । नैचरल गॅस जैसे ऊर्जास्रोत मर्यादित हैं । वायुमण्डल के बारे में कहे तो, ओझोन का स्तर विरल और दूषित हो रहा है । वनस्पति- सृष्टि के बारे में कहे तो, जंगल दिन ब दिन घटते ही जा रहे हैं । केवल 'कम से कम उपयोग' के द्वारा पर्यावरण की रक्षा नहीं होनेवाली है । पर्यावरण समृद्ध करने के लिए अभयारण्य की निर्मिति, पानी का सूक्ष्मता से सिंचन, rain water harvesting, निरुपयोगी जल का पुनर्वापर, जैविक प्रकार से खेती, कचरे से ऊर्जानिर्मिति, सूर्य की ऊर्जा का उपयोग आदि कई तरीके अपनाये जा सकते हैं । षट्जीवनिकाय-रक्षा का अहिंसात्मक स्वरूप प्रायः प्रत्येक जैनी को पूर्णत: परिचित है तथापि बचावात्मक पापभावना का प्रारूप उसके मन में इतना पक्का हो गया है कि उपरोक्त सभी उपायों के प्रति बहुत ही कम जागृति दिखायी देती है । भारत जैसे खण्डप्राय देश में जो लोग इन उपायों में अग्रेसर हैं उनकी मात्रा भी बहुत ही अल्प है। परिणामवश षट्जीवनिकाय रक्षा के ग्रान्थिक वर्णन हमें पर्यावरण की रक्षा में निष्प्रभ से लग रहे हैं। (२) शाकाहार-मांसाहार : आदर्शवादी दृष्टिकोण और वस्तुस्थिति : जैन धर्म और आचारप्रणाली ने अहिंसा तत्त्व का उपयोजन कई तरीके से किया। मनुष्यलक्ष्यी दृष्टिकोण अपनाकर अहिंसक बनने का एक सीधा तरीका वह है, 'पूर्णत: शाकाहार का पालन ।' उसके अनुसार त्रस जीवों की हत्या, सम्पूर्ण निषिद्ध है। अतः वनस्पतिजन्य आहार पर लक्ष केन्द्रित करके उसके अन्तर्भूत भी अनेक नियम उपनियम 'पिण्डेषणा' शीर्षक के अन्तर्गत विस्तृत रूप से बताये हैं। CNNIBN के द्वारा भारत में किये हुए सव्हें के अनुसार भारत में ३०% लोग शाकाहारी हैं । शाकाहार अभियान यद्यपि फैल रहा है तथापि अगर पूरे विश्व को ध्यान में रखे तो शायद १०% से ज्यादा लोग कतई शाकाहारी नहीं है। अहिंसा का हवाला देकर विश्व के ९०% लोगों को शाकाहारी बनाना प्रायः अशक्यप्राय ही है । इसके कई कारण हैं - १) विश्व में कई धर्म और सम्प्रदाय ऐसे हैं कि जिनमें मांसाहार का बिल्कुल ही निषेध नहीं है । 3Page Navigation
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