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________________ (६) हिंसा के चार प्रकार : असली बात यह है कि अहिंसा का विवेचन करनेवाले जैन ग्रन्थ में ज्यादा से ज्यादा हिंसा के प्रकार और उपप्रकारों का ही वर्णन पाया जाता है । अहिंसा की सर्वमान्य व्याख्या देना बहुतही मुश्किल है लेकिन जैन ग्रन्थकार हिंसा की व्याख्या देने में ज्यादा सफल हुए हैं । विचारवन्तों ने 'प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा', इस व्याख्या के अनेक आयाम सामने लाये हैं और स्पष्ट किया है कि, “प्रमाद एवं षड्विकारों के कारण से, खुद के और दूसरे के, भावप्राणों का या द्रव्यप्राणों का किया हुआ घात या वध हिंसा है ।" जैन ग्रन्थों में हिंसा के चार प्रकार बताये हैं - * 'आरम्भी हिंसा' जीवनोपयोगी साधन जुटाने के लिए की हुई हिंसा है । वह कितनी भी कम करें लेकिन वह अनिवार्य हिंसा है। * आजीविका के लिए किया हआ उद्योग 'उद्यम' कहलाता है। हर एक उद्यम में हिंसा अनिवार्य रूप में करनी ही पड़ती है। * अन्याय का प्रतिकार करने के लिए की हुई हिंसा विरोधी हिंसा' है । इसके कई उदाहरण जैन इतिहास में भी पाये जाते हैं । जैन शास्त्र प्रणीत शलाकापुरुषों में वासुदेव-प्रतिवासुदेव की अवधारणा निश्चित रूप से की गयी है । ये मानों सत्प्रवृत्ति-दुष्प्रवृत्तियों का युद्ध ही है । इस प्रकार के युद्ध प्रसंगोपात्त आवश्य माने हैं । * हिंसा का चौथा प्रकार ‘संकल्पी हिंसा' है। रागद्वेष के वश होकर, संकल्पपूर्वक हिंसा करने का __निषेध जैन धर्म ने हमेशा किया है । लेकिन उक्त तीन प्रकार की हिंसा तो अनिवार्य रूप से मानी ही है । मानों अहिंसा की मर्यादा की ओर ही ये तीन हिंसाएँ संकेत दे रही है । उपदेशप्रधान जैन ग्रन्थों ने कई बार उपमा-दृष्टान्त और रूपकों का उपयोजन पाया जाता है । कई बार आध्यात्मिक क्षेत्र में भी युद्ध का रूपक प्रयुक्त होता है । उत्तराध्ययनसूत्र का नमिप्रव्रज्या अध्ययन पूरी तरह युद्ध के रूपक पर आधारित है । जिस अध्यात्म में अहिंसा और शान्ति का साम्राज्य है उसके सन्दर्भ में युद्ध और हिंसा के दिये हुए रूपक, एक विचारवन्त के लिए, सचमुच एक आह्वान है। (७) मानवजाति की प्रगति के लिए अनिवार्य हिंसा : अगर अहिंसा का मूलगामी विचार करें तो प्राणिविज्ञान, शरीरविज्ञान, औषधीविज्ञान, जनुकीयविज्ञान, अन्तरिक्षविज्ञान आदि कई ज्ञानक्षेत्रों में नये नये प्रयोग हो रहे हैं। उन प्रयोगों की सफलता-असफलता देखने
SR No.212296
Book TitleAadhunik kal me Ahimsa Tattva ke Upyojan ki Maryadaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaumudi Baldota
PublisherKaumudi Baldota
Publication Year2013
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
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