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________________ के लिए ये सब प्रयोग वानर-गिनिपिग्ज-विविध पशुपक्षी-वनस्पति आदि पर किये जाते हैं। कई बार प्रयोग असफल होने से इनकी हिंसा भी होती है / शरीरविच्छेदन के लिए कई प्राणियों का इस्तेमाल करना पडता है / कई बार जैन संघटनाएँ इसका विरोध भी दर्शाती है / लेकिन तथ्य यह है कि इस हिंसा को सर्वस्वी निषिद्ध नहीं माना जा सकता / आधुनिक परिप्रेक्ष्य में यह ‘अनिवार्य हिंसा' के अन्तर्गत आ सकती है। उपसंहार : उपसंहार में हम यहीं कहना चाहते हैं कि सैद्धान्तिक दृष्टि से अहिंसा एवं विश्वशान्ति का सम्बन्ध बहुत ही निकटता का है / अगर विश्वशान्ति निर्माण होनेवाली है तो अहिंसा के सिवाय कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है / शाकाहार के द्वारा, पर्यावरण की रक्षा के द्वारा, उपदेश और सत्संग के द्वारा, बौद्धिक चर्चाओं के द्वारा, सैकडों स्वयंसेवी संस्थाएँ अहिंसाप्रचार का काम कर रही हैं और करती ही रहेंगी / इस शोधनिबन्ध में हमने विश्वशान्ति की प्रस्थापना के लिए कौनकौनसी मर्यादाएँ हैं, यह दिखाने का वास्तववादी प्रयास किया है / हमारे अभिमत से, जैसा की शोधलेख में कहा है कि, “विश्वशान्ति एक 'आभासी सत्य' (virtual reality) है / " आदर्शवाद के स्वरूप में सर्वदा मान्य है / लेकिन दुनिया का दिन-ब-दिन बदलता रुख देखनेपर कोई भी विचारवन्त यह नहीं कह सकता कि, 'हम विश्वशान्ति की ओर बढ़ रहे हैं।' आशावादी सूर लगाने के बजाय, हमें हमारी परवशता एवं हतबलता एक वास्तव के स्वरूप में मान्य करनी ही पडेगी / वैसे भी जैन तत्त्वज्ञान में अध्यात्म की प्रधानता होने के कारण विश्वशान्ति की बात बहुत ही कम मात्रा में छेडी गयी है / आत्मकल्याण और आत्मशान्ति की बात हमेशा अग्रेसर रही है / अतः हमें मान्य ही करना पडेगा कि विश्वशान्ति के प्रयास हमें 'निष्कामता' से ही करने पड़ेंगे / | ********** सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूचि (अकारानुक्रम से) 1) आचारांग (आयारो) : सं.आ.तुलसी, मुनि नथमल, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान), 1974 2) आवश्यकसूत्र (आवस्सयसुत्तं) : महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई, 1977 3) उपासकदशा (उवासगदसा) : अंगसुत्ताणि 3, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान), वि.सं.२०३१ 4) तत्त्वार्थसूत्र : वाचक उमास्वाति, पं. सुखलालजी संघवी, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, 2001 5) दशवैकालिक (दसवेयालिय) : नवसुत्ताणि 5, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान), 1987 6) दर्शन और चिन्तन : पं. सुखलाल संघवी, सं. दलसुख मालवणिया, जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, बनारस, 1957 7) पुरुषार्थसिद्धयुपाय : आ.अमृतचन्द्र, व्याख्याकार : क्षुल्लक धर्मानन्द, सुरेश जैन, नई दिल्ली, 1989 8) प्रश्नव्याकरण (पण्हावागरणाई) : अंगसुत्ताणि 3, सं.आ. तुलसी, युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान), वि.सं.२०३१ 9) भगवती आराधना : आ.शिवार्य, विजयोदया टीकासहित, सं.कैलाशचन्द्र शास्त्री, हिराचन्द खुशालचन्द जैन ग्रन्थमाला, फलटण, 1990 10) विपाकसूत्र (विवागसुय) : व्याख्याकार : ज्ञानमुनि, सं.शिवमुनि, आगम प्रकाशन समिति, लुधियाना, 2004 11) व्याख्याप्रज्ञप्ति (वियाहपण्णत्ती/भगवई) : सं.आ.तुलसी, युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान), 1992 12) सूत्रकृतांग (सूयगडो) : सं.आ.महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान), 2006 13) रिसर्च-पेपर : जैन श्रावकाचार में पन्द्रह कर्मादान : एक समीक्षा, डॉ.कौमुदी बलदोटा, ऑल इंडिया ओरिएण्टल कॉन्फरन्स (AIOC), अधिवेशन 44, कुरुक्षेत्र, जुलै 2008 若若若若若若若若若若 11
SR No.212296
Book TitleAadhunik kal me Ahimsa Tattva ke Upyojan ki Maryadaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaumudi Baldota
PublisherKaumudi Baldota
Publication Year2013
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
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