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________________ समन्तभद्र भारती स्नेह और लोभ से कुलिंगियों को प्रणाम और विनय भी नहीं करता। ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा सम्यग्दर्शन मुख्यतया उपासनीय है। सम्यग्दर्शन मोक्ष मार्ग में खेवटिया के समान है। उसके बिना ज्ञान और चारित्र की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फलोदय उसी तरह नहीं हो पाते जिस तरह बीज के अभाव में वृक्ष की उत्पत्ति आदि नहीं होती। समन्तभद्राचार्य ने सम्यग्दर्शन की महत्ता का जो उल्लेख किया है वह उसके गौरव का द्योतक है। दूसरे अधिकार में सम्यग्ज्ञान का स्वरूप निर्दिष्ट करते हुए उसके विषय चारों अनुयोगों का सामान्य कथन दिया है। तीसरे अधिकार में सम्यक् चारित्र के धारण करने की पात्रता बतलाते हुए हिंसादि पाप प्रणालिकाओं से विरति को चारित्र बतलाया है। वह चारित्र सकल और विकल के भेद से दो प्रकार का है। सकल चारित्र मुनियों के और विकल चारित्र गृहस्थों के होता है, जो अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत रूप है। ___ चतुर्थ अधिकार में दिग्व्रत, अनर्थदण्डव्रत, भोगोपभोग परिमाणाव्रत इन तीन गुणव्रतों का, अनर्थदण्डव्रत के पांच भेदों का और पांच पांच अतिचारों का वर्णन किया है। पांचवें अधिकार में 4 शिक्षाव्रतों और उनके अतिचारों का वर्णन किया गया है। सामायिक के समय गृहस्थ को चेलोपसृष्ट मुनि की उपमा दी है। छठे अधिकार में सल्लेखना का स्वरूप निर्दिष्ट करते हुए उसके पांच अतिचारों का कथन किया है / सातवें अधिकार में श्रावक के उन ग्यारह पदों-प्रतिमाओं का स्वरूप दिया है। और बतलाया है कि उत्तरोत्तर प्रतिमाओं के गुण पूर्व पूर्व की प्रतिमाओं के सम्पूर्ण गुणों को लिये हुए है। इस तरह इस ग्रन्थ में श्रावकों के अनुष्ठान करने योग्य समीचीन धर्म का विधिवत् कथन दिया हुआ है। यह ग्रन्थ भी समन्तभद्र भारती के अन्य ग्रन्थों के समान ही प्रामाणिक है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212131
Book TitleSamantbhadra Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherZ_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf
Publication Year
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size1 MB
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