________________ धार्मिक सहिष्णुता और जैन धर्म 367 जामनगर, 1939, पृ० 120 / 24. सन्मतितर्क, संपा० सुखलाल संघवी, प्रका० पूंजीभाई ग्रन्थमाला 10. सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य। कार्यालय, अहमदाबाद, 1932, 1.28 / एयाओ तिन्त्रिपयडीओ मोहणिज्जस्स दंसणे।।- उत्तराध्यययन 25. सव्वे समयंति सम्मं चेगवसाओ नया विरुद्धा वि। संपा०- साधवी चन्दना, प्रका० वीरायतन प्रकाशन, आगरा, मिच्च ववहारिणो इव, राआदासीण वसवत्ती।। 1972, 33/9 / -विशेषाभाष्य, श्री जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण टीका हेमचन्द्र, प्रका० 11. वही, 25/31-32 / हर्षचन्द्र भूराभाई, बनारस, सं० 2441, 2267 / 12. सूत्रकृतांगसूत्र, संपा० मधुकर मुनि, प्रका० श्री आगम प्रकाशन 26. अध्यात्मोपनिषद्, यशोविजय, न्यायाचार यशोविजयकृत ग्रन्थमाला, समिति, ब्यावर, 1982, 1/1/2/23. प्रका० श्री जैनधर्म प्रकारक सभा, भावनगर, वि०सं० 1965, 13. सन्मतितर्कप्रकरण, 3/69 / 61,70, 71,73 / 14. उत्तराध्ययनसूत्र, संपा० साधवी चन्दना, प्रका० वीरायतन प्रकाशन, 27. अरहता इसिणा बुइयं-इसिभासियाई, संपा० महोपाध्याय विनयसागर, आगरा, 1972, 36/49 / प्रका० प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, 1988, 1 / 15. सम्बोधसप्ततिका, अनु० डॉ० रविशंकर मिश्र, प्रका० पार्श्वनाथ 28. एवमेगे उ पासत्था ते भुज्जो विप्पगब्धिया। विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, 1986, 2 / एवं उवट्ठिता संता ण ते दुक्खविमोक्खया।। 16. उपदेशतरङ्गिणी, संपा० विजय जिनेन्द्रसूरि, प्रका० श्री हर्ष पुष्पामृत -सूत्रकृतांगसूत्र, संपा० मधुकर मुनि, प्रका० श्री आगम प्रकाशन जैन ग्रन्थमाला, सौराष्ट्र, 1986, 1/8 / समिति, ब्यावर, 1982, 1/2/31-32 / 17. लोकतत्त्वनिर्णय, 140. 29. आचारांगसूत्र, संपा० मधुकरमुनि, प्रका० श्री आगम प्रकाशन 18. महादेवस्तोत्र, 44. समिति, ब्यावर, 2/1/5/29 / 19. योगदृष्टिसम्मुच्चय, हरिभद्र, प्रका० विजय कमल केशर ग्रन्थमाला, 30. हे खंदया! सागयं, खंदया ! सुसागयं- भगवतीसूत्र, संपा० घासी खम्भात् , वि०सं० 1992, 130. लाल जी, प्रका० अ०भा०श्वे०स्था० जैन शास्त्रोद्धार समिति, 20. उत्तराध्ययनसूत्र, संपा० साध्वी चन्दना, प्रका० वीरायतन प्रकाशन, राजकोट, 1962 / आगरा, 1972, 23/25. 31. उत्तराध्यययन संपा० साधवी चन्दना, प्रका० वीरायतन प्रकाशन, 21. तत्त्वसंग्रह, संपा० द्वारिका प्रसाद शास्त्री, प्रका० बौद्ध भारती, आगरा, 1972, अध्याय 23 / वाराणसी, 1968, 3588 / 32. देखें-शास्त्रवार्तासमुच्चय, हरभिद्रसूरि, प्रका० लालभाई, दलपतभाई 22. अनन्तधर्मात्मकमेव तत्वम्, २२-अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, भारतीय विद्या मंदिर, अहमदाबाद, 1968, 3/206, 3/237, हेमचंद्र, प्रका० जैन ग्रन्थ प्रकाशन सभा, भावनगर, वि०सं० 6/64-67 / 1996 / 33. सामायिकपाठ, संपा० प्रेमराज बोगावत, प्रका० सम्यग्ज्ञान प्रचारक 23. नत्थि नयहिविहूणं सुत्तं अत्यो य जिणवये किंचि-आवयकनियुक्ति,५४४ मण्डल, जयपुर, 1975, 1 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org