________________ चतुर्थ खण्ड / 148 इस तरह हमने देखा कि एक आश्चर्यजनक समता के भाव से जैनधर्म समृद्ध है। इसी कारण यहाँ पुरुष के साथ नारी, श्रमण के साथ श्रमणी को भी पूरा-पूरा अवसर मिला है। किसी भी पंथ की श्रमणी की बनिस्बत जैन संघ की श्रमणी की स्थिति बड़ी गरिमामयी है। इक्कीसवीं सदी की ओर जा रहे विश्व में जैन समाज का नारीवर्ग आधुनिक भले न हो . पर आध्यात्मिक रूप से समृद्ध अवश्य होगा। अनुकरणीय उदाहरण वही प्रस्तुत कर सकेगा। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org