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जैन धर्म में श्रमणियों की गौरवमयी परम्परा | १४७
ने प्रच्छन्न रूप से पुत्रजन्म को सफल बनाया। वृक्ष तले रखे जाने पर निःसन्तान व्यक्ति ने उसे ग्रहण किया। वह पुत्र करकण्ड आगे चलकर राजा बना व अपने ही पिता राजा दधिवाहन से प्रसंगवश युद्धरत हुअा। भयंकर जनहत्या को रोकने के लिए पद्मावती ने रहस्योद्घाटन किया। अपवाद का डर त्यागा। युद्ध रुक गया। एक श्रमणी द्वारा इस प्रकार का रहस्योद्घाटन कितने बड़े साहस की बात है।
अवंती नरेश चण्डप्रद्योतन की पत्नी शिवा ने प्रार्या चन्दना के प्राश्रय में रहकर मोक्ष प्राप्त किया। प्रभु महावीर के अभिग्रह की पूर्ति करने में चन्दना का चारित्य भी अनुपम दिव्यता लिए हुए था।
__ मदनरेखा ने अपने पति युगबाहु को भ्राता राजा मणिरथ द्वारा तलवार के वार से मार दिये जाने पर भी पति का परलोक सुधारने के लिये णवकार मन्त्र का जाप करवाया । फलत: वह देवरूप हुआ । हत्यारा मणिरथ मारा गया व उसके स्थान पर मदनरेखा का पुत्र गद्दी पर बैठा । दूसरा पुत्र मिथिलानरेश पद्मरथ के यहाँ पला, क्योंकि मदनरेखा हाथी द्वारा सूण्ड से उछाल दिये जाने पर विद्याधर मणिप्रभ द्वारा विमान में झेल ली गयी। कालांतर में एक गज को लेकर दोनों भाइयों में यूद्ध हया। मदनरेखा ने, जो अब एक श्रमणी थी, सुना तो दोनों पुत्रों को प्रबोध देकर युद्ध रोका।
जैन शासन में अत्यधिक प्रसिद्ध चार चलिकानों की उपलब्धि साध्वी यक्षा को भी सीमंधर स्वामी के द्वारा हुई। वह भ्राता मुनि श्रीयक को मृत्यु से संतप्त थी। दो चूलिकाओं का संयोजन दशवैकालिक सूत्र के साथ व दो का प्राचारांग सूत्र के साथ हुआ है । ये चूलिकाएँ पागम का अभिन्न अंग बनी हुई हैं। प्रार्य स्थलिभद्र भी उन्हीं के भ्राता थे जो मुनि श्रीयक से सात वर्ष पूर्व दीक्षित हुए थे।
जम्बू कुमार द्वारा अपने सह पाठों पत्नियों को प्रथम रात्रि में ही विरागमय पथ पर अग्रसर किया जाना भी एक विरल घटना है। पुत्र अवंति सुकुमाल का मुनिरूप में जम्बुकी द्वारा भक्षण किये जाने पर विलाप करती माता भद्रा का व एक गभिणी वधु को छोड़ अन्य पुत्रवधुओं का प्राचार्य सुहस्ती से दीक्षा प्राप्त करना भी मर्मस्पर्शी प्रसंग है।
आचार्य हरिभद्र ने, प्रेरणा देने वाली साध्वी याकिनी महत्तरा को धर्मजननी के रूप में हृदय में स्थान दिया। उनकी प्रसिद्धि याकिनीसूनु अर्थात् याकिनीपुत्र के नाम से है।
मल्लिकुमारी के साथ तीन सौ स्त्रियों ने संयम ग्रहण किया। भ. अरिष्टनेमि से यक्षिणी आदि अनेक राजपुत्रियों ने दीक्षा प्राप्त की। यक्षिणी श्रमणीसंघ की प्रवर्तिनी नियुक्त हुई। पद्मावती प्रादि अनेक राजकूमारियों ने दीक्षा ग्रहण की।
भगवान महावीर से देवानन्दा (पूर्वमाता) ने दीक्षा ग्रहण की। क्षत्रियकुण्ड के राजकुमार जमालि सह उसकी पत्नी प्रियदर्शना व छह हजार स्त्रियों ने दीक्षा ग्रहण की। आर्या चन्दना की सेवा में काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेनकृष्णा, महासेनकृष्णा आदि चम्पानगरी की राजरानियों ने दीक्षा ग्रहण की व कठोरतर तपश्चर्या करके निर्वाण प्राप्त किया।
धम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है
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