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________________ गणधर का काल माना है। और उनके बाद उनके चन्द्रगुप्त मौर्य की समयकालीनता सिद्ध नहीं होती। उत्तराधिकारी क्रमशः सुधर्मा और जम्बूस्वामी को उन दोनों महापुरुषों के बीच वही प्रसिद्ध 60 वर्ष का रखा है पर स्थविरावली में गौतम के स्थान पर सुधर्मा अन्तर पड़ता है। अर्थात् यदि भद्रबाहु के समय वीर का काल 20 वर्ष (12+8=20) रखा है जबकि नि. 162 में 60 वर्ष बढ़ा दिये जायें तो चन्द्रगुप्त कल्पसूत्र पूर्ववर्ती परम्परा को ही स्वीकार कर महावीर मौर्य और भद्रबाहु की समय कालीनता ठीक बन जाती निर्वाण के बाद 12 वर्ष गौतम का और 8 वर्ष है। अथवा चन्द्र गुप्तमौर्य के काल में से 60 वर्ष पीछे सुधर्मा का काल निर्धारण करता है। यह काल गणना हटा दिये जायें जैसा कि हेमचन्द्राचार्य ने महावीर जो जैसी भी हो, पर दोनों परम्पराए भद्रबाह के कुशल निर्वाण से 215 वर्ष की परम्परा के स्थान में 155 वर्ष नेतृत्व को सहर्ष स्वीकार करती हुई दिखाई देती हैं। पश्चात् चन्द्रगुप्त का राजा होना लिखा है तो दोतों की अन्तर यहाँ यह है कि दिगम्बर परम्परा महावीर समयकालीनता बन सकती है । निर्वाण के 162 वर्ष बाद भद्रबाह का निर्वाण समय मानती है जबकि श्वेताम्बर परम्परा 170 वर्ष बाद । श्वेताम्बर पपम्परानुसार महावीर निर्वाण के यहाँ लगभग आठ वर्ष का कोई विशेष अन्तर नहीं । उपरान्त जैन संघ परम्परा इस प्रकार दी जाती है:पर समस्या यह है कि इस कालगणना से भद्रबाह और आचार्य कालगणना राजकाल 1. गौतम 2. सुधर्मा 3. जम्बू -12 वर्ष ---- 8 वर्ष -44 वर्ष पालक --60 वर्ष 4. प्रभव 5. स्वयंभू 6. यशोभद्र 7. संभूतिविजय 8. भद्रबाहु 9. स्थूलभद्र -11 वर्ष -23 वर्ष -50 वर्ष - 8 वर्ष -14 वर्ष -45 वर्ष नवनन्द -155 वर्ष 215 वर्ष -215 बर्ष 4. जैन साहित्य का इतिहास : पूर्व पीठिका, पृ० 342. 5. पट्टावली समुच्चय, पृ० 17. १०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210885
Book TitleJain Sangh aur Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size2 MB
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