________________ आध्यात्मिक साधना का विकासक्रम : गुणस्थान 531 . 66 द्वितीया पूर्वकरणे प्रथमस्तात्त्विको भवेत् / आयोज्य करणादूवं द्वितीया इति तद्विदः / / -योगवृष्टि समुच्चय-१० 70 गोम्मटसार गा० 51 71 कर्मग्रन्थ भाग 2, गा०६-१० 72 षट्खण्डागम, धवलावृत्ति, पृ० 183-184 73 कर्मग्रन्थ भाग 2, गा२११ 74 गोम्मटसार गा०६१ 75 गोम्मटसार गा० 62 76 गुणस्थान क्रमारोह 77 "विश्रु तश्चक्षुरत विश्वतो मुखो विश्वतो बाहुरत विश्वतस्यात् // " -श्वेताश्वतरोपनिषद 3-3, 11-15 78 सवर्तः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् / सर्वतः श्रु तिमल्लोके, सर्वमावृत्य तिष्ठति / -भगवद्गीता 13, 13 76 पातंजल योग-दर्शन पाद 3, सूत्र २२वाँ का भाष्य और वृत्ति तथा पाद 4 सूत्र 4 का भाष्य और वृत्ति 80 सजोग केवली -षटखण्डागम 1 / 121 81 अयोग केवली -षटखण्डागम 1-1-22 82 अन्ये तु मिथ्यादर्शनानि भावपरिणतो बाह्यात्मा, सम्यग्दर्शनादि-परिण तस्त्वन्तरात्मा, केवलज्ञानादि परिणमस्तु परमात्मा। --अध्यात्ममत परीक्षा गा० 125 83 बाह्यात्मा चान्तरात्मा च परमात्मेति च त्रयः / कायाधिष्ठायक ध्येया प्रसिद्ध योग वाङमये // अन्य मिथ्यात्व सम्यक्त्व केवलज्ञान भागिनः / मित्ते च क्षीणमोहे च विश्रान्ताल्ते त्वयोगिनी / / -योगावतार द्वात्रिंशिका 17-18 84 (क) योगावतार द्वात्रिंशिका 15-21 (ख) परमात्म-प्रकाश 13-14, 15 85 योगवाशिष्ठ, उत्पत्ति प्रकरण, सर्ग 117 श्लोक 2 से 24 86 'दर्शन अने चिन्तन' भाग दो, पृ० 116 87 'योगवासिष्ठ' उत्पत्ति प्रकरण, सर्ग 118, श्लोक 5 / 15 88 'जैन आचार' -डॉ० मोहनलाल मेहता, पृ० 36 / 89 योग-दर्शन-व्यास महाभाष्य 10 पातंजल-दर्शन, पाद 1, सूत्र 1, व्यास भाष्य तथा वाचस्पति मिश्र की टीका / 11 भगवद्गीता-डॉ. राधाकृष्णन पृष्ठ 313 / 62 सत्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृति सम्भवाः / निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् / / -गीता 1415 93 त्रिभिर्गुणमयविरेभिः सर्वमिदं जगत् / मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥-गीता 7.13 14 न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः / माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः // -गीता 7.15 65 सर्वद्वाराणि संयम्य मनोदधि निरुध्य च। मूर्धन्याधियात्मनः प्राणभास्थितो योग धारणाम् // ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्या मनुस्मरन् / यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् / / -गीता 8/11-13 66 दुवे पुथुज्जना वुत्ता बुद्ध नादिच्च बंधुना / अंधो पुथुज्जनो एको कल्याणेको पुथुज्जनो॥ -मज्झिमनिकाय, मूल परियाय, सुत्तवण्णना। 67 देखिए- 'योगशास्त्र'-आचार्य हेमचन्द्र, प्रकाश, 68 विनय पिटक-चुल्लवग्ग-खन्दक 4-4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org