________________ श्रावकाचार : एक परिशीलन 553 . + + + + + +++ ++++++ + ++ + + ++ ++ ++ d 15 चम्पाए पालिए नाम, 'सावए' आसि वाणिओ। महावीरस्स भगवओ सीसे सोउ महप्पणो / - उत्त० अ० 21 16 (क) तत्थणं सावत्थोए नयरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासगा परिवसन्ति --भग० सू० 20 12 उ० 1 (ख) समणोवासए जाए अभिगय जीवाजीवे उवलद्ध पुण्ण पावे। . 17 तएणं से आणन्दे गाहावइ समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए तप्पढमाए थूलगं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा / 18 जीव सुहमथूला संकप्पा आरम्भ भवे दुविहा / सावराह-निरवराह सविक्खा एव निरविक्खा / 16 तयाणन्तरं च णं थूलगं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए। 20 उपासकदशा 1, 21 उपासकदशा 1, 22 उपासकदशा 1, 23 उपासकदशा 1, 24 वही, 25 वही 26 उपासकदशा 1, 27 रूवाणुवाए बहिया पोग्गल पक्खेवे"-उपासकबशा 28 विधिद्रव्यदातृपात्र विशेषात् / 26 अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम् / 30 उपासकदशा 1, 31 भारं णं वहमाणस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता। -स्थानांग 4 32 चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता तंज हा–अम्मापिउसमाणे, भाईसमाणे, मित्तसमाणे, सवत्तिसमाणे / -स्थानांगसूत्र, ठाणा 4 33 स्थानांग सू० ठा०४ 34 तिहि ठाणेहि समणोवासए महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ / -स्थानांग 3 35 उपासकदशांग 36 कइविहे णं भन्ते पच्चक्खाणे पन्नत्ते ? गोयमा दुविहे पन्नत्ते तं जहा-सव्वमूलगुण पच्चक्खाणे य देसमूलगुण पच्चक्खाणे य॥ -भगवती सूत्र 37 "असहेज्जदेवासुरनागसुवण्णजक्खरक्खस्सकिन्नर किंपुरिसगरुलगंधब्वमहोरगाएहिंदेवगणेहिनिग्गंथाओ पावयणाओ अण तिक्कमणिज्जा णिग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया, निन्वितिगिच्छा, लट्ठा गहिया, पुच्छियट्ठा, अभिगयट्ठा, विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिजपेमाणुरागरत्ता अयमाउसो निग्गंथे पावयणे अट्ठ अयं परमट्ठ सेसे अण?', उसियफलिहा, अवंगुयदुवारा, चियंततेउरघरप्पवेसा बहूहिं सीलब्वयगुणवेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं चाउदसट्टमुदिट्ट पुण्णमासिणीसु पडिपुण्ण पोसहं सम्म अणुपालेमाणा" -भगवतीसूत्र श० 2 ग० 25 38 भगवती श०१ उ० 8 36 भगवती सू० श० 11 उद्दे० 12 ----पुष्कर वाणी ------------------------------------ ------------------ 3 साँप बिल में अकेला रहता है, बिल में प्रवेश करते समय बिलकुल सीधा ? 1 हो जाता है। कैंचुली के साथ अनासक्त वृत्ति रखता है, उसे छोड़ देता है। अपने लक्ष्य (भक्ष्य) पर दृष्टि टिकाए रखता है / साधक को सांप से शिक्षा प्राप्त होती है। कहीं भी रहे, मन में एकाकी वृत्ति रखे, व्यवहार में सदा सरल और सीधा रहे। कैंचुली की तरह देह को / भिन्न समझकर उससे अनासक्त रहे और अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रहे। 4-0-------------------- -------------------------- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org