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मंगलबार विजइ महाविदेदि, सोगंध नयरि गुणरासि गेहि । तिहि मया सिहितगुजम्म जाय, सागरकुरंग श्य दोनि जाय४२ की संति दोषि ते विविगि, की खाहि पुरंतरि मनद रंगि। कश्या बिहु पिस्कइ दुन्नि वाल, इग वाक्षिय रुविहि श्रसाख४३ के तुजेश्य से पुडिया च सा युग भइआएं तथा य । इद् अब मोहमहानरिंद, जसु श्राण वड्ड् सिरिइंदचंद ॥ ४४ ॥ रिक रिडुलकेस रितु तास, नंदण जुचणंतरि सप्पयास । पित्त रागकेसरी य नाम, तस्सुय इचं सागर मजिरामा ४२॥ मह पुत्त एस पुण विण्यवंत, परिगह जिलास जगि विजयवंत। वेसानरधूया कूरय चित्ति, नामिहिं जगि एसा पथकसति ॥४६॥ इय निसुलिय तच्चरियप्पवंच, हरिमुद्धतंतरोर्मचवंच । अन्नुन्नमित्तार्व पवन्न, जीविय पुए इक सरीर जिन्न ॥ ४७ ॥ सायर सायरकुमरेहिं सत्यि, न तु कूरथाइ मित्तीय प्रति। तसु जाय कुरंग सरंगचित्त, सह कुरयाइ सविसेसरत ॥ ४० ॥
ते वि तारापत्त, इदिवरूव सोहगंजुत्त । परिय नियमुदजणपरियरेष, विवणसी कयमणेण ॥ ४७ ॥ परदेसगमण पुचंति माइ, पिल वारश् ते वि दु छविसाइ । तह विडु पश्चिय देतरम्भि, ते दोय जाय श्ररम्मि ॥ १० ॥ ते निटिस लुंटिया त्रिमुन्कि, घात रुगण गिरिसावयासज्जि । संगो विययेवधा पवन्न, ते धवलपुरिद्धि पट्टणि पुन ॥ ५१ ॥ तिहिं इट्ट एग मंयि अखंक, ववसाय कुएंति मद्दापयंक : विढवंति तच दीणार पुन्नि, सहसाइ गव्यकहिहिं पवन्न ॥ ५२ ॥ अह बहु तरहा ताण चित्ति, लालसा बहुयवित्ति । कप्पासतिल किय जंगसाख, तिहिं बदुविह अक्रिय पावजाल ५३ उण खित्तकरसप्प करेति, तसजीवसहिय तिल पी मयंति । मदुगुखियधाइसकूममाइ, वाहिति पत्र ते पमाइ ॥ ५४ ॥ १ तत्सुतोऽहं सागरनामा.
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