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उपदेश-
र
॥३०॥
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श्रह समरविजय नश्तमिजमंत, न दु पिरकारयणुश्चय महंत । पुर वि संठिय कूरकम्म, कह पावकच विसुक रम्मश्न गिरिहत्तु गर्न नणु मिनाह, श्य नियमणि परिय सुदुरस्कदाह । पुरनयरगाम चोरी करत, सो वह परघणकण हरंत ॥३॥ नियनायदेस सुनिसक, बा बंद का मासह अन्नदिवसि निग्गदिय सोय, सामंतिहिं तकर जिम ससोय॥३॥ निवश्वग्ग श्राणिय तेहिं एस,सामिय इणि लुटिय सयस देस । ज रुञ्चश्त कीरज श्मस्स, इय जंपिय तहिं नरवरस्स ॥३॥ नरव मिहहावर जीवमाण, अप्पावर बहुधारयणदाण । सो निच श्रश्सश्चचित्त, नरव पुणि हिय दयापवित्त ॥३३॥ तसु वुत्त खेसु मह रयणरजा, अंतेनरपुरहिं न मज्क कन। सो जाणइनरव दिन केम, खिजार हीखिलाइ अप्प एम ॥३॥ उदासिय नुयवलि जो गहेमि, कयकिञ्च सच्च शप्पजे गणेमि । सो बहु परिचुक्कट रायदेहि, मुक्कल तहा विधवह नेहि ३५ जण तष्ठ जपईएरिस उवन्न, सिरिकित्तिचंदनरराय धन्न । जिणि पाखिय सञ्जणगुण अपार, खनु जायह किय जीवोक्यार ३६
किहिं विधर किहिं सायर गजीर, किहिं कायर किदिं पुण धीर वीर।
किहि गयवर किहिं गइहर सोय, श्य अंतर तिहिं वागर खोय ॥ ३७॥ सुबजारबामुछा अतुल, वतन सुरसरिससिखस । संवेगरंग अंगीकरे, नविग्गचित्त निव परि वसे ॥३०॥ बह सुगुरु तव चउनाएजुत्त, पणसमिइ तीनिगुत्तीहिं गुत्ता थायरिय पबोहसुनामधिला, पुरि समवसरिय चारित्तसलारिया हरसियमण तसुधागमणि राय, जाएविणु जत्तिहिं नम पाय । सुगुरूवएस कन्निहिं घरे, वय बारसेव अंगीकरे ॥३०॥ वह पुनियवंधवचरिच, कहमेस सामि बहुदोसजुत्ता नव गुरूवि मखुरवाणि, पुहवीसर निसुणश्वमाशि ॥४१॥
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