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अहह किं जायमेयं महाणत्यय, एम पुखर तिहिं सयखजपसस्वयं ॥१॥ कहमिमेणबाणोण मारिवाए, मिखह सबे विखाजेश वारिवाए। कहामिमस्सेरिसी कुमइ संपनिया, तह पखोर्यतु नयणेहि जयसंचया ॥१॥ एम जंपतखोएण खग्गप्पहारा सबारिड मूवई साहा । बजार रोसरित्तो महीवासवो, घरिय वाहात रश्यनयरूसको ॥१३॥ किंतए जाय किमाइ अणायारया, दिस्सए किं न संसारनिस्सारया । तुक जइ कलामेएण रबाणा, ता तुमं गिएह अवमित्य खरकम्मुष्णा ॥२५॥ जेश खबिमाए इत्य जसमाए, तं कुखीहिं कश्या विन करिबाए । अंपिए एवमवि तस्स नो वसमो, पहबुधासमावन्न पावरमो॥१५॥ इत्यजुयखम्मि विष्ठोमिछाएं गई, जह य उस्कणिय श्रापाखर गर्छ ।
बुझई कह य धम्मोवएसाश्य, जस्स मणमफि पार्वधयारुश्चर्य ।। १६ ॥ ॥जास ॥ सरिय बियाशिय चिसिहि त्राणिय पावखाशि जासयतपर्छ ।
संवेगिहिं रंजिय कम्मि अगंजिय, अधिर मुण धम अप्पण॥२४॥ सोविजय रखोइ, पक्षकारक्षिमित्त अमित्त हो । निहिया पातमिमेण मज्ज, वीमंसिय श्य गय नयरमम॥१०॥