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उपदेश
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तह कर सगमपुधियह सब, यणमोसोमा रिहि घष्ठ । संतरि पेसइ बहुय सब, न गराइ ते पावह जर अपत्य ॥ ५५ ॥ धएक रहिगार लिंटि, करवुक्ति श्रहिय दाहिहिं करति । वंति महयतीय गेहि, अनिसि ते मुश्लिय अप्पदेहि ५६ चापावकोमीदि ताह, धएकोकि समजित्य दिहिं । श्रह पश्चिय जखनिहिमज्जि ते हि पूरिय पवढ्ण वढवरकरेहिं ॥ ए७॥ उम्मेवि कन्नि जंपिय कुरंगि, तो कुरयाइ मनि धरिय रंगि । न हसु मित्तमिममप्पणिक, धणनागरं जइ सोरिक कदा ॥ २८ ॥ जमु धष तसु सय प्रऐग इंति, श्रडुंतवि घणबंधव मिसंति। घणवंतह श्रावास विश्ववंति, खीलाइ मणोरड्सय फलं ति||२९|| नियह विहिं कुण न दविणजाय, तवयण हूय तणुमण सहाय । निच्चं पि कहिय पावोवएस, कस चित्तिहिं न वसइ जण अत्रस्स तो पाकिय सायर सायरम्मि, तो तेरा जलुम्मी पूरियम्मि । सो खदेह जलगरसएहि, संपत्त नरय असुहोहिं ॥ ६१ ॥ श्री मय किच्च तेण निम्मिय असेस, मणि इरसिय तब सम्म एस जा जाइ किंपि जलमग्गि जाव, फुट्टइ बाइ तरकणि सपाव ६२
नीरंतरि बुडुच सयललोय, हुय खं खं खयमज्जि पोय गय सयखवश्च वरकर जलम्मि, जीवियसंसय सो परिय तम्मि ॥६३॥ श्रतुरियदिवसि पट्टिय लदेवि, उत्तिन्न सो य कहिहिं करेवि । संपत्तल कम्मिवि पट्टम्मि, वाणिज करइ सो पुत्रि तम्मि ६४ | धा श्रयितुंजिसु विजखजोय, चिंतित्तु एमिपरि सप्पमोय। बणगणि जमिर अह जमर जेम, सो जरिकय सीदिए एम तेम ६५ मरिण पत्त घूमप्पजाइ, जिहिं कुरकक्षरक प्रस्संखयाइ । जब जमिय तर्ज अंजणगिरम्मि, केसरिकिसोर द्वय कंदर म्मि॥६६॥ कठाएक िदो षि निमंति, नरयम्मिच मरिय जंति । उबडिय जग्गनुयंग हूय, निहिकडाई हुनई सुप्पनूय ॥ ६७ ॥ | ॥ घात ॥ पाविय पंचतण रोरुवसग्गिए कांता पत्ता नरय। घूमप्प नामिहिं कह वामिहिं तत्तो जब जममई बढ्य ॥६८॥
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सठ विका.
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