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स्वस्त
सप्ततिका.
छपदेश॥ १५॥
नवजागे काहएं तं खेतं श्रप्पाणाय विहरति । अंमिनपरावित्तिं अपमत्ता ते पकुवंति ॥४॥ पुरदेवया य तेसिं गुणेहि श्रावजिया कुणइ जत्ति । तेसिं सीसो दत्तो विहरिस्ता सुचिरमायार्ड ॥५॥ पस्सामि कहं बदृति सूरिणो सुहिय असुहिया वावि । पुखिये चेव उवस्सयम्मि दिन सुकेण ॥६॥ निवनिवासी एए नवस्सए तेसि नो पविजे सो। आसन्नतणकुमीरे विडे गुरु नमिय मायाए ॥७॥ जाणिनु जिस्कवेखं पत्तं गहिचं गुरूण पुचीए । खग्गो य श्रवन्नाए पन्नापविहीएचित्तो सो॥॥ विहरति ते निसंगा नीउच्चकुखाई कालदोसेए । पाविति अंतर्पताइंस सकिलस्सनियभणम्मिए॥ न सुत सगेहाई दसई एस सढसहावियो। खरसुसाट सो विना संगमगुरूहिं॥ १० ॥ तश्चित्तरस्कषत्वं गुरू पबिछो घणगेहम्मि। रेवश्दोसग्गद्दि सदंग रोय सया वि ॥ ११ ॥ संजाया उम्भासा सें न सहा सिसू समाहिं सो। मा रुयसित्ति जणित्ता चप्पुमिया वाश्या गुरुणा ॥१२॥ तक्ष्यणायन्नण तकाद्ध रेवई सुररी नशा । सो रहि रोयंतो तुछो अणड य सुध्यरं ॥ १३ ॥ पभिखानिया य गुरुणो मोयगमाहिं गुरुयजचीए । सरसाहारं दार्थ विसभिजे सो विचिंते ॥१५॥ दावियमेगं तु कुखं विरस्स एएण मे सयं जमा सिरिमंघरेसु सर्व संपाइ तत्व एयरस ।। १५ ॥ एयं विमसमायो उवस्सयं सूरिसंतियं न गई। पायरिया सुरं हिंभिकए समुवागया वसहि ॥ १६॥ अंतं पंतमसिवा सुत्थावत्या कुणंति सकार्य । योयरचरियपमिकमवेखाए गुरुहिं सो जपि ॥ १५ ॥
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