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मेइ । पटुवया सुखेवि इय गोयमेण पण मिय विन्नरान कोलगेण ॥ २० ॥ घुत्त - श्रणुम तुम्ह पामिय पिरकचं सामिय [ मियापुत्त नियखोयहिहिं । आइट वीरिहिं चरमसरी रिहिं चश्लिय सो इरिसियम लिहिं ॥ २१ ॥ जास – मियगामद | भनिदिं वच्चंत सिरिगोयम निवजवलिहिं पत्त । मुत्तिमंत किरि एह सुरहुम श्रह चिंतामणि अतुलपरकम् ॥ २२ ॥ देवि मियावर पिचिय नयसिद्धिं श्रवह जंपर पुण वयहिहिं । आसण मिहिवि तरकणि उयि श्रमियमेहबुधिहिं किरि पुछिय ॥ १३ ॥ सामिय म्ह णुग्गह किछ नियपयकमघरिहिं जं दिवजं । अम्द मोरह सलु वि सि अ श्रमियरसघुटिहिं पि ॥ २४ ॥ कजा किंपि महासचिव रुचड़ तं विल । गोयमसामी तो पचणे मियादेवि तं कन्नि सुई || २५ || इच्छा अम्द तुम्ह सुयपिरकलि तरकशि तं निमुणे वि वियरकणि । सहयपुत्तचष्ठरो सिंगारिय श्रवि गोयम अगर धारिय ॥ २६ ॥ सुहगुरुचर हिहिं रंगि नमावर धम्मलाज पिय बुल्लावइ । एपि कति नटु अम्हि इहागय पढम जाय जो स्थि तुरंगय ॥ 29 ॥ जासु रूव सिखपुत्तड़ तुल बह मिनिहिं बहु पहिला | धम्मसीति तदंसणकारच मिगा जाई तो पडु श्रवधार ॥ २८ ॥ जयवं तं न कोऽवि बिया सामि कई पुए तं वरकाण । तो गोयमगणहरु तं चास लाख दंतकंति उल्लास ॥ २७ ॥ तियणगुरु सिरि वीरि पयासिय तस्सरूवि मदमण उनासिय । जइ एवं ता सामि विसंबद ख क इत्थ वि धरिय अणुग्गह ॥ ३० ॥ | श्य मियदेविवयण श्रनिय गोयम गुरु संतिय बहुमन्निय । जोयणसमय तस्स का पसल तो तराणि त्रेस निवत्तनं । ॥ ३१ ॥ सगमीय थाहारिहिं तो पूरिय नोयण विहि समुवि किरि चूरिय । संकखबंधवि सा श्रारिसिय गिदवार
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