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उपदंश-
॥१९॥
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जा आविय हरसिय ॥ ३२ ॥ नियमुहबंधवि सत्तवचलि तो मियदेवि जण करि अंजलि । तुम्ह वि मुहपत्तीय मुह सप्ततिका. ढंकडु श्रागचंतचित्तिमासकहु ॥ ३३ ॥ तो नीमहर बारुग्घामा तरकणि करहिगंध सह सामा । सप्पममय गोममय सरिजन जो पसरंत होइ नहुँ पिछउ ॥ ३४ ॥ अन्नगंध उधरस लहेविण सखवले अवसर जाणे विण । दीसइ अंग-15
श्राहारिहिं पीएड नयण वयानासा परिहीएड ॥ ३५॥ परिकत्तपत्तमनम्मि सोय तरिहि तुजा परिकविय तोय र *सो खुला चला आहारसन्न लुघल रसगिश अकयपुन्न ॥ ३६॥ घत्तसो तत्थ खुलंतन कम्मिरुखंतल लोमादार कर
सद्ध । पुणरवि नीहारिय रोगिहि नारिय पूइत्तणि देहाल वहु ॥ ३५ ॥ जास-परिस पेरकेविण तस्सरूव गोयम गणनायग विस्सरूच । वरग्ग अनंगुर धर चित्ति चिंतश्य अचिंतिय कम्ममत्ति ॥ ३० ।। मियदेवि अणुन्ना सदिवि देवा सिरिगोयम चलीयन श्रह तदेव । संपत्तन पडुपयजुय नमे करकमल जोमि इय विन्नवे ॥ ३५ ॥ तुम्हाण श्राण पडु सिरि धरितु हवं विजयरायनवणम्मि पत्त । जह कहिय तुम्हि तह घेव दि मई खोरूव नंदण अणिक ॥४॥ आइसह नाइ मह तञ्चरित्त एयारिस सो दृश्य किंनिमित्त । कम्माणि तेण कह अजियाई अतिरकाणि य जिणि सङ्गिायाई ॥४१॥श्य पुछिय सत्थमणेण तेण पहु बकरे महुरस्सरेण । इत्येव अस्थि पुर सयवार तिहि राय आसि धण-3 व उदार ॥ ४२ ॥ तस्सेह विजयवशणनिहाण वरखेमय धन्नधणोडवाण । जसु केसर पंचसयाई गाम नाणाविय- ए एवएमएन्निराम ॥ ४३ ॥ इकाईतिहिं रच्नमवासि जसु सुम्मा चित्तिहिं क्सइ वासि । जो पाम सङ्गणतोयपासि महुकूम करेवि निग्यणमहासि ॥४॥ चिंताहिगार गामाण तस्स अप्पिय निवेष निग्पणमएस्स । गामीण लोय उस्सह
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