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अब दृष्टान्तः
परिपक्कसुबिंची वर्णम्मि सुमणोदरंबलुंची । लग्गयजयतुंधी कोसंबीए वरपुरीष 1 १ ॥ पप्फुखुप्पल निसो सुरूव। गतो सुदी कयसमिती | सिद्धी बिसाइदसा वसई तर्हि धम्मचवचतो ॥ २ ॥ सो धम्म परीण देवसूरीण पवरविकाए । पासे सुगुणावासे पवाए बारसवयाई ॥ ३ ॥ सो अन्नया कयादि हु पचिमरतीय गिरो संतो । पंचपरमि6िसमरपते समरए चित्ते ॥ ४ ॥ रयाणि जस्स गेहे कक्कयाहंसगमाईसि । हुंति घणी रु गरिको निहियो किमिद्द इयरेहिं ॥ ५ ॥ दरकारकरित्यक लिये चखिजे रयणात्यमेस तर्ज । वयरागरसं पड़ चोरेहिं इंटियं दवं ॥ ६ ॥ इकि झट जर्मतो मिलिट कावासियस्स कस्स विसो । तेणावि खरकलरिकच त्ति मुरिं सकलम् ॥ ७ ॥ सिद्धिकए तस्सु कई सचितोऽसि जो महाभाग । नियवश्यरो असेसो परिकहिजे तेण तस्स त ॥ ८ ॥ जर तुह अतुल विजवकणम्मि इजा त समागन्छ । सरलप्पा सो चर्चि तस्सत्ये निम्रयसेष ॥ ए ॥ तेपाली गिरिमेहलाई आहरणकाखियाजदमे। तो जोड़ा स वृत्तो जोहारसु जो इमं देषि ॥ १० ॥ तुइ घणवादी होही गरु एयप्पनावज्रं जयवं । जिएमुकिय न हु अन्नं नमामि देवं दयाहीणं ॥ ११ ॥ जोहारिय जिणदेव सेव को कुइ अवरामराणं । काउण श्रमयपाएं को पु जो कंजियं पियइ ॥ १२ ॥ सं प जंपइ जोई रे रे नर धिरु कुरु पाविध । तुह मत्यरण पूर्व देवीए नए करिस्समदं ॥ १३ ॥ इय अपितु विकोसी कार्य लग्गं करे या घायं । ता तकोणे सुतो विद्यासियो व सुवर्ण ॥ १४ ॥ भानामो सुस्तावय वचनमईए र जोई। कार पाव रे विमुंचसु सावयमेयं
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