________________
उपदेश-
॥१४
॥
यवसंतत्ता, केष विकलोण उकुमणा ॥ ५॥ तदेहपुर हिगंधप्पसरणजियसुरहिवासा य । उसहसया य जाया, मलस्स सप्ततिका. गंधो समुसिल ॥६॥ तत्तो तेष विमंसियमेयं सुझसुरहिवासियंगेण । समगाणं सबमवि नणु, सई जश्न दुमखो हुँतो
देशिकणेव सुगंबणिजमेसिं चरित्तमखिलं पि। मुचतरालपमिठ, कंजियबिंदू हर सायं ॥ ॥ अपमिकतो एयषणा इमो गई कयंतघरं । उववन्नो सुरखोए, सिरिजिराक्षसुचाया तो पुट पुरीए, कोसंवीए महिअपुत्तत्तं । पावित्ता निविन्नो, जवाजे पचनामावन्नो ॥ १०॥ चारित्तरत्तमाणसो, कम्ममुन्नं मुणिस्स तस्स तडे । जा मुग्गंधंगो, संगो विदु जस्स अरश्करो ॥११॥ सो जाइ जाश्मंतो वि, जत्थ जत्थालएसु सम्हाणं । निंद तत्थासेसो, खोल सोठवगचित्तो ॥ १२ ॥ साहूहिं वारि तो, बाहिं निग्गन मा तुमं वछ । जेण जणुडाहज़रो, बारो पसरिट खोए ॥ १३ ॥ तो चिय वसहीए, चेव श्मो तस्स अन्नपाणाई । वाणितु दिति मुणिणो, गुणिणो गुणगारवुम्मुका ॥ १४॥ दिवसे वा रत्तीए, कालस्सगं करे सो निच्छ । निचलचित्तत्ताए, मेरुवाकंपणिकतणू ॥ १५॥ सासणसुरीए तत्तो, विहिर सो सुरहिंदेहवासियो । किरियाणुचाएपराण, नई किमिह सोयम्मि ॥ १६ ॥ बंधुरगंधुदुरदेड्याए पुषरवि तहेव जएमने । जाई श्र वशवाज, तस्स तई देवयाए पुणो ॥ १७ ॥ साहावियंगगंधो, कउँ श्मो पाखई नियं चरणं । सम्म धम्माराहलपरो मुखी सग्गई पत्तो ॥ १७॥ एवं सुनंद तुर्त, पित्तम्मि विसारया निवेसित्ता । परिहरह धुर्गउजरं, जह मुहिक होह परजम्मे ॥ १५॥
पति जुगुप्सोपरि स्टान्तः।
290
PRERAKASH