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गण । अरुणाविमाणिहिं सुकय पुम, सिरिकामदेव वा शिरि सत्त हस्थ सुपसत्य देह, कंचावन्नु अल सुरकगेह । चत्तारि पलिय पालेवि श्राउ, अहरगण सेविय सुहसहान ।। ७६ ॥ श्रह दर पुन्छ जिणिंद, पय पणमी जाव धरी अमंद । चविऊण कहिं गमिही त य, पहु पजण गोयम निसुणि सोय ॥ 9 ॥ जवनिय खित्त महाविदेहि, उत्तमकुखि सावय इन मेहि । तिहिं पाखीय संजम अप्पसस्क, पामेसइ सासच मुरकसुरक ॥ ७० ॥ सिरिवीरनाह मुहकमल रंगि, निसुणीय नाणाविह जुत्तिनंगि । सोहम्मि कहिय जह जंबुसामि, अयश् सुय सत्तम अंगवामि ॥ ए ॥ तिणिपरि मई जंपिय खेसमित्त, नवसंधिबंध बंधुर चरित्त । अन्नाए दोसि जं इह उसुत्त, तं मित्राक्कम मह निरुत्त ॥ ७० ॥श्य खेमिहिं नासिय धम्मिहि वासिय कामदेव सावय चरिय । जे नियमणि आण ते सुह माण सोमवयणि सिवसिरि वरीय ॥ १॥
॥इति श्रीकामदेवश्रावकसन्धिः ॥ अथ पुगंगोपरि निदर्शनं दयतेकायषा न पुगंग, कस्स वि नियतणुसुश्त्तगण । कम्मवसगस्स कस्स वि, विसेस साहुबग्गस्स ॥१॥ जो पुण। कुण थाणो, नाणताणोवलत्तसाहुस्स । सो सखुवेयकरो, जाय इह नंदवणिज व ॥ २॥ चपाए नयरीए, सुनंदना-11 लामण वाणिर्ट शासि । सो अत्चदेहचोकत्तणेण श्रवगाइ सई पि ॥ ३ ॥ जो जं मग्गइ साह, तस्स तयं दइ परमव-1 माए । सहसजाई, सो पुण नंमपर बादं॥४॥ वह शनया तदावणमुवागया जनपरिगया रिसियो । गम्हा-1
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