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________________ हा विहिय परासी दश-१४इसीपरि सो गारयहरण धन मुहपत्तीय खेर, मुणिवेस सीसटुंचिय करे॥६॥कारस मासाश्य करेइ, पमिमा श्कारसद सततिका. १४ अणुसरे। निसि सेसि धम्मजागरि करेइ, नियचित्तिहिं इणिपरिचिंतवे ।। ६३ ॥ पण दिय तिबदमासाय, दस पाए . सहिय जा सकाय । सिरिवीरनाह जां विजयवंत, अणसए हजं गिएिहसु ता पसंत ॥ ६४॥ श्रह सत्तखित्ति घण वावरे, गुरुमुहि दसणवय उच्चरे । चत्तारि सरण चित्तिहिं करेइ, मंगल चत्वारि समुच्चरे ।। ६५ ॥ पाणाश्वाय जं किय निसंक, नासा असबनासिय जु वंक । श्रादिश विक्ष जंधण अपार, मेहुण जं सेविय मई लदार ॥ ६६ ॥ जं कि परिग्गह | मई श्रसार, जं कोह माण माया विकार । जं खोज पिम्म कखहो य दोस, पेसुन्न अरइरइ बहुकिस ॥६॥ परवाय परह जं अप्पखाण, इय किश श्रढारस पाषाण । विगहा जं विहिय धनप्पयार, बावीस अनरकह किय | आहार ॥ ६८ ॥ जं अट्ट रुद्द किय सुन्निकाण, श्रासेविय पनरस कम्मदाण । हिंसिय चरासी लरक जीव, ते मिला। कम जावजीव ॥ ६॥ जिएराय पूर्य किय तित्थजत्त, जं पोसह सामाश्य पवित्त । जंजलिहिं दिन्नन मुणिहि दाण,जं सीलिय सील दयानिहाए ॥ ॥जंबारजय तव किय पसिच, जनावण नाविय अविसुद्धा जंपाखिय वयसम्मत्तसार, जं & गुरुजए सेविय बहुपयार ॥ ७१ ॥ घात-च्चाइ जु किसन तिजय पसिघर्च धम्मविसुळ जिणकहिय । ते सवि अणुमोय चित्तपमोय कसमख धोय पुषकिय ।। ७३॥ संखेहण किधी मास सुन्नि,तिणि अप्पा पूरिय पत्रलपुन्नि । श्रणसण परिपा- ||॥१४४ लिय एगमास, धणसयण युत्त परिवण निरास ॥७३॥ परमिभिमतमुहकाएलीप, पतकालि नहु हीण दीण ।। लि सो वीस वरिस गिय सावगत्त, सोहम्म नाम सुरजवलि पत्त ॥ सोहम्मवमसयवरविमाए, ईसानकूषि जसु अब 288 मुणिहि दाण'
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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