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उप्पन्नड़ एरिस संकमम्मि, छाइनेरवजयसयसंकुल म्मि ॥ ४९ ॥ इपिरि गुणवन्नण करीय तस्स, सिरिकामदेव सावयवरस्स | संपत्त देव सुरखोयवाण, वासव अगर किय तसु वखाए ॥ ५० ॥ अइ गिन्देश जद्दारमण एह, नियचित्ति श्रभिग्गह सुकयगेह । पोसह पारिसु सिरिवप्रमाण, पय नमिय पजाय समइ सुकाए ॥ २१ ॥ दिपयरग्गमणिहिं सुद्ध-चा, पश्यि मेलिय नियमणसत्य । निग्गन्नई चंपापुरवराजे, सिरिसंखसष्ठु जिम सुखना ॥ ५२ ॥ घात-तिपयाहिएसारीय सामिजुहारिय वारीय सायण निजण । निसुख जिल्वाणीय श्रमीयसमाषीय श्राणीय मनि श्रादघण ॥ ५३ ॥ श्रासिय सामीय कामदेव, तुइ पासि श्रा संपत्त देव । तिथि रकस रूव करी सपुत, करि खग्गधरी तच चिन्नभिन्न ॥ ५४ ॥ तयांतर हत्यिनुयंगमाण, वेडदिय रूव महापमाए । दुइ तेख उवद्दव जूरि किछ, तनुं गिरि जिम तिरकसरिहिं न विश्व ॥ ५९ ॥ श्र धर धीरतप धरेवि, तई पालीय पोसपमिम लेवि । श्रह समासमणी सामि तत्थ, आमंतिय जासड़ इय पसत्य ॥ २६ ॥ गिहिवास वसंतद् सावयाण, जइ एरिस निश्चल धम्मकाण । सुत्तत्थसार संगहपरहिं, बेरग्गखग्गमणमुहिवरेहिं ॥ २७ ॥ ता संजमवयक किहिं विसेसि, धीरतण घरिवर्ड विस्रमदेसि । इय सामि * वाणि सुणि एगचित्त, सधे जयंति मुणिवर तहन्ति ॥ १८ ॥ घात - जिएनायग वंदिय गुण अजिनंदिय गोयमपमुह नमेवि करे । पोसह संपूरिय हरिसंकूरिय कामदेव संपत्त घरे ॥ २९ ॥ श्रह काउसग्ग परिमा करेश, सो पंचमास विहि श्रणुसरेइ । बम्मास घरइ वर बंजचेरु, थिरचित्त करी जिम रहइ मेरु || ६० ॥ सचित जिमइ न हु सत्तमास, आरंभ कर नडू अठमास । न करावर श्वन्नद् पासि तेम, नवमास कर इक्षिपरिहिं नेम ॥ ६१ ॥ तसु खिरख तं नडु जिमेर, दसमास
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