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उपदेश
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चंपिय पयतद्धि मारिषु निसंक, तुह पस्सिर मरणावत्य बँक ॥ ३७ ॥ इय जंपिय कंपिय न दु तत्र, जायद नवि चुक कामदेव । तं जाणि नाणि नियसुंरुदंकि, उचालिय गय लिहिं ते चंकि ॥ ३० ॥ निवत दंतूमलिहि विश, पुरोसिद्धिं नियपयतिलिहिं दिन | तिहिं दिन पुरक नारय सरिस्क, तहवि ड न तु खंमिय धम्मपरक || ३ || अह हथिरूव संहरिय तय किय सप्पन्न देविहिं खोए । घएक सामल कुमिलकाय, रोसारुप नया जिसने पिसाय ॥ ४० ॥ दिदीबिस एरिस कराल, मिहंत फूकिहिं विकास । तसु श्रग्गड़ श्रावीय जर एम, दिव तुट्टसि मुफ * बसि पकिय कम ॥ ४१ ॥ श्रवित्यसि किय का सग्ग, इणि धम्मि नत्थि तुह मुरक सग्ग । तनुं म करि श्रनिम्गद नीम श्रखि, मई मसिय मरण पामिसि कालि ॥ ४२ ॥ य वार वार बागरिय तास, पुल चित्त न गयउ धम्मवास । तट तरकणि उग्गनुयंग रीस, जरि श्रावीय बीटइ गीव सीस ॥ ४३ ॥ दसहिहिं करि मसिवा लग्ग अंग, पुए होइ खगार न चित्तजंग । खोइ तसु हीयइ सुतिरक दाढ, इपिरि तिणि वेयण सहिय गाढ ॥ ४४ ॥ घात - यह दि * पलंजिय सुर महारं जिय तसु निम्मलगुण सो मुणए । पथमी हुन्छ तरकणि जय जय रत्र ऋषि कामदेव सावय थुपए ॥ ४५ ॥
जसु कन्नजुयलि कुंमल विसाल, अमिलाए कंठि वरकुसुममाख । सिरिमलक रयण मणि अमिय चंग, श्राजरपिहिं जिगमिंग कर अंग ॥ ४६ ॥ श्रश्फारहार सिंगारसार, कयवार करई सुर वार वार । हरि हर चतराशण अमरवार, सुरगुरु तुह गुण नवि लड् पार ॥ ४७ ॥ त धन्नपुन्न गुणरयणखाणि, जसु जंपर जस नियमडुरवाणि । सुरवर सुरगसम - जिहिं निविक, ते कामदेव मई छात्रा दि ॥ ४० ॥ सदखल तुह जीघिय माम्म, जिपि उप्रिय न हू जिरायधम्म ।
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सप्ततिका
॥१४३॥