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________________ न वि जाए जिएवर धम्म रम्म ॥ २४ ॥ मसि श्रय सिफुद्ध असिगुलीयवन्न, अइटप्पर सुप्पयसरिखकन्न । श्रगि नया विकरालवेस, जनमुह जिमी कविखकेस ॥ २५ ॥ चूली जुयसन्निफुकनास, घोग्यपुचोवम कुच्छ तास । कुसि दंत सत्ततालुच्चदेह, गिरिकंदरसममुह रकगेह ॥ २६ ॥ डुड़कर जसु पत्थर सिवसमाए, खोढी किरि अंगुलिसेशि जाए । खड्ड पिट्टप्पएस, पाय जासु पवयविसेस ॥ २७ ॥ काकिंग्य छंदिरतणी मात्र, गखि पहिरी जेण महाकराख । कुंमल कियकन्निहिं नल जेणि, फादरगणि बकीय जासु वेषि ॥ २८ ॥ इय रकसरूव करेवि देव, बीदावर सावय कामदेव । रेधि कुछ निम्गुण एक, जइ पोसह मिदिसि नहीय छाऊ ॥ २९ ॥ तट पिरिक तिरक मह खग्ग एह, तु खं खं हवं करिसु देह । निसुत इय तबयण कुछ, न चलइ नियतायह सो विसि ॥ ३० ॥ न हु मेरुमड़ीघर चख वाण, न हु चुक्कर अरजुनतन वाण । मकाय न मिट्टदर जलदि जेम, नवि मुम्बइ धम्मिय काल तेम ॥३१॥ करवासि करी तिथि किन खंभ, उवसग्ग सहइ ते अश्पयं । वेयण अहियास चित्तमुद्धि, निश्चल आणि धम्मबुद्धि ॥ ३२ ॥ घात - मंगलि निवमिय देविहिं विनकिय कामदेव साहसपत्ररो । न गएड़ नलु वेयण जेवण जेवण पुरा उपिय सुकाणपरो ॥ ३३ ॥ दिन जायि देविहिं उद्दिनापि, अत्रि सो बहड़ धम्मजाणि । ता किजाड़ पुएरचि को सवाल, जड़ नजर सावयधम्मजात || ३४ ॥ अंजणपाय किरि मुत्तिमंत, गलगऊ करंतर श्रमहंत । सुपयंक सुरु- + दंनिहिं कराल, दंतूसल भूसखसम बिसाउ ॥ ३५ ॥ इय हत्यिरूव किरि सुर कहे, हियम मर श्रघ वहे । ज बड्डुसि नडू तरं पञ्चखाए, सामाइय पौसद धम्मजाण ॥ ३६ ॥ ता संपइ सुमादरिंग, लात्रिय वैगिहिं गयणमग्गि । 285
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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