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उपदेश- मणितिय, जिछीमुहदंतण मन अक्ष ॥ ११॥ सचट्टण होच सुगंधयाण, उन्होदय शमयम अंगन्हाण । करि मुहिय कुख
सुयखकन्नि, सियवत्यजुयल पहिरण मुनि ॥ १५॥ तणुसूहणमंजियि सुवत्य, मह हाड विलेषण तह पसत्य । पसार । ॥१४॥
अगर केसरिहिं सार, 5 फलकमलमालई उदार ॥ १३ ॥ तह धूव सिखाखल अगरुयाण, सवि अन्नधूव कियपच्चखाण । तंव तह मुग्गतएव पलेह, महकपेय पुण होऊ एह ॥ १५ ॥ जोयणिहिं कलमचाउख पवित्त, मुग उमद कलाई दाखिजुत्त । असुरहि सुरहिषीय सरयकाल, संजवखीरामलफल रसाक्ष ॥ १५॥ मंमुक्किय तह पलंक साग, दुइ तिम्मण पूरणवडयराग । घयवर अपुव तह खंम्खजा, पक्कन्न अन्न मह बजाणिका ॥ १६ ॥ जाफख देवकुसुम कपूरि, एसाककोदयखरचचूरि । ए पंच मेलि तंबोल मन, संपकाइ जिणि मुहसुद्धि वा ॥ १७ ॥ घात-श्य खेवि अनिम्गह। नमिय जयप्पह कामदेव भावीय सघरे । नदा तसुनारिय सामि जुहारीय वारसवय गिएह सुपरे ॥१८॥ चछदस वरसिहि सिरिकामदेव, विहिस निम्मिय वयबारसेव । श्रह चिंता पश्चिमरति चित्ति, दिव कि धम्म विसेस कृत्ति
॥ १॥ गिहककि नरिवारजनग्ग, सूरुग्गमि मित्तसनाश्वग्ग । जोयाविय पुलिय गेहनार, अप्पा नियजिच्द सुयइ४. सार ॥ २०॥ घात-नयरीमन्नारिहि घणवित्यारिहिं पोसहसाल स कारवश्ए । कारस सावयपमिम पञ्जावय कामदेव ।
सावय वहश्य ॥ २१॥ जिपरायपाय पुक्का तिकाल, सम्मत्त पमिम पाखरसाक्ष । मुश्मास धर वयबारसार, सामाश्य पाखड निरश्यार ॥२॥ चनजेय कर पोसह विसुद्ध, चउपचतिहीसु स धम्मस । सिरिकामदेव किय कामसम्ग, अत्थर जा निम्मलकापतग्ग ॥ १३ ॥ त्वंतरि मार मिवदिति, वसगह कारणि बमुति। संपत्तठ निर कूरकम्म,
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॥१४॥
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