________________
282
वियवं ॥ ६० ॥ इय सगरचकिचरियं संखित्तं वृत्तमित्य वत्थुम्मि । जवा जावित मषे आराहद समाधम्मधुरं ॥ ८८ ॥ ॥ इति शोकावकाशाप्रदाने श्री सगरचरित्रम् ॥
"जयं न कार्ये" अत्रार्थे श्रीकामदेवदृष्टान्तः सन्धिबन्धेनोच्यते
सिरितिसवानंदणमणचाणंदण वझमाण जिणवर नमिय । पचणिसुन्दज़बंगद् सत्तम अंग कामदेव सावयचरिय ॥१॥ धनघनस मिऊ छात्र देस, मगहानिहाय सुहसंनिवेस । गयकंपा चंपापुरीय जाति, तिहिं कण्यरयणमाहिती यखालि ॥ शाजियसत्तुराय पुरि करइ र अरिलजकोओसदा । गाहावर निवसइ कामदेव, सुह विवसई जिम दोगुंददेव ॥ ३॥ तसु जहा नाम सुरू जा, निम्मल सीलगुणाऽणव । श्रद् पुन्ननद्दवरचेइयम्मि, नाविद्दतरुगणुसोहियम्मि ॥ ४ ॥ सिरिगोयम सुदुम पमुरक साहु, परिवरिय हरिय जबपुरकदाडु । वितन पत्त वीरनाह, चंपापुरपरिसरि सुरसाह || ५|| जियसत्तुराय परिवारजुत्त, सिरिबीरचरणचंद निमित्त । अह कामदेव गिवइ पवित्त, कियवेस समवसरणम्मि पत्त ॥६॥ पट्ट पण मिय देसा सुणीय रम्म, नियचित्तिर्हि जातीय धम्ममम्म । सम्मत्तमूखवयवारसेव, पहुपासिद्धिं गिves कामदेव ॥ ७ ॥ अरिहंत देव गुरु साहु धम्म, जिलधम्म एह सम्मत अम्ह । परतित्थियदेवा न हु नमेसु नडु अन्नतित्थ सेवा करंसु ॥ ८ ॥ न हु धूलजीवहिंसचं कयात्रि, तह पंच लिय टालचं सयावि । परघण न हु गिएहलं पावदेव, जद्दा विए रमणी नियम एउ || ए || ववसाय कवंतरि तह निदासि, चक्कोमिकण्यपरिगपमाणि । उग्गोडल सुरही सड्स सहि पीएस नीर श्रगासवुधि ॥ १० ॥ सय पंच पंच इस समय जाति, पवइप चत्तारि तदा वखापि । सयसट्स पाय चुप्प -
2-83