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________________ सूट य पुत्लसणे समुप्पनो अश्कुलियरूवधरो जाउँ मार्यगजाईए ॥ ॥बह महुमासम्मि कयावि एस सह खुद्दपहि रममाणो । जंवा ते वा अपंत य तेहिं गखे गहिए ॥ नियमम्बा बाहिं खित्तो तो सोऽवि चिंतए चित्ते । एएहि कहं विहियं श्रहो अहो कम्मदोसणं ॥१०॥स्त्वंतरम्मि एगोवही कुमाराण पासमतीणो । सो तेहिं उरकणेणं निवा४ रिल सक्सिदोसत्ता ॥ ११ ॥ जलसप्पो अह बीई तरकणमेएहिं भाग दिछ। जीवंतो सो मुको तो बलनामो विचिं तेई ॥ १२॥ सबेऽवि अप्पणो चिय दोसेहिं हम्मई इदं जीवो।न हु परसकेहि कयावि पावाई असुहसंघायं ॥ १३ ॥ वेहि चिय जखसप्पो मुक्को जीवंतर्ड खु दिघोऽदि । इय नाउमहं दोसे कयाविन परस्स पयमिस्स ॥१४॥ परिजा-1 विय समझे समहा गहिय गुरुसगासम्मि । सो यालइ निरव पवद्ध धम्मगुणसळ ॥ १५॥ वह विहरतो पत्तो कासीए सो हुतिंगवणम्मि । तिगजस्कासेवियपा सम्म तवं तवा ॥ १६॥ तत्वमया समेड इन्नो जरको वणम्मि पाहु ए । कह जो तुम न दीससि तो तं पश् तिंगो जण ॥ १७ ॥ साहुस्सेयस्साई कुसमालो ममि जत्तिमणवरयं । तेणा१४ गमणस्साहं न बहामवयासयं मणयं ॥ १०॥ मावि उजापम्मि य वसन्ति मुणियो निरीहया गुषिणो। तेषुत्ते तत्य गि पमाश्णो तेण ते दिख ॥ १५॥ ते दोऽवि तस्स जति अणन्ति धम्मापुरायरंगिया । अह कोसखियनिवंगुनवा समिया तहिं नह॥५॥ जरकवर्ष विहे तीए दिशेस काससग्गठित । वखनामरिसी कसिलो मखमलियो जीसहायारो॥१॥ इसिहं तरुणाचमएए रूवखावमपुत्रदेहाए । पस्सह पस्सह सहिया पञ्चको रस्कसो किमयं ॥ २॥ तो सा जस्केड सबसक्यमुखहासमसहमावेष । विदिया गहिमिया तह बह परिधीया मुहिवरे ॥२३॥ एवं नया 274
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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