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उपदेश
डिसेण, मुखिरायमपिल्टिय पत्रिवेण । बहुपत्थर निस्किय परियहो य, वह पुलिय तेण य अप्पयो य॥॥ सो कत्व साहु जोश्य हुँत, भियतनपोस भुणिमामहंत । तेणवि जोहण तषिय वत्त, बरिय सुणिय सो मुस्क पत्त ॥३०॥ रिहिं अवसारिय उवल तेण, श्रासासिय मुणि सह परियणे । तसु देह सजा काऊश राय, खामीय संपत्तम गेड- नाय ॥३१॥दवदंतरायरिसि सुचित्त, श्य जावण जावई सुष्पवित्त । खालंगुर देह असार एह, मखमुत्सपरीमइतपच गेह ॥ ३ ॥ जय श्त्य साहिक किंपि का, सिवसुद्द पाविका तेण श् । न हु कोई मित्त मह सत्तु तेम, फरुस-| रकर हई (च) वागरउँ (3) केम ॥ ३३ ॥ अवराहपरेसुवि पोरवेसु, नदु रोस वहउँ (3)जीवियहरेसु । नवयारिसु गुणसंथरपरेसु, समचित्तवित्ति तह पंवेसु ॥ ३४॥ कश्यादि जुहिन्सिमिपाखु, सेवा समुवागय अकिवालु। दुकोहणमआणमणिक, श्य तक रेरे धिरु ॥ ३५ ॥ कुखकमलयासण हीपचित्त, तुह जम्मवि जीविय श्रयवित्त । अवहेक्षिय किणि कारणि मुर्णिद, तई (इ) सायखसोम जइह चंद ॥ ३६॥ तश्या तई (3) कत्थवि गयन यासि, गिती न सुणीय गुणहरासि । इस्थिपचर वेदिय नियबखेड, अश्या दवदंठनरेसरेण ॥ ३७॥ पढम पंचवि | अम्हे जिया य, पन्छा पंचवि नियइंदिया य । तो पंचमहबय धरिय जार, जिप्पिय कुछ सकश मुषि उदार ॥ ३० ॥ ४ नमएिक एह जगवंदणिज, पुजाणवि मुणिवर एह पुनाशवंतरि मुसह सहत पीक, दवदंतरायरिसि सिरिकिरीम ॥ ३५॥ नियचाउतप्पच पसंत जाणि, चत्तारि कसायह करीय हाणि । मुणिवीणच निच्चखसुक्कापि, संचसजिय* शाषीय इकवाणि ॥४॥पमिवक्रिय कार्यतरियमेस, पच्चाखिय कम्भिषण असेस । शारुहिय खवगसेपिं मुधिंद, संप-8
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