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________________ RECE A यकुमुयर्विद ॥ १५॥ तत्यागयमुणिगणमश्ररेडिं, अरविंद जेम सेविय सुरेहिं । बर्वदणकति समेइ राजे, पक्षमइ बहनचिहि सूरिपाठ ॥ १६ ॥ तद्देसाएरंजियमाणसेए, सेवियवेरग्गरसायणेण । धनरामुनियमसेस, विसयाश्सुक पर कए एस ॥17॥ पमिलता जमरण, परियाणमयशाइन गणिय तेण । वह सुत्तश्चात्यसिख सहेवि, गुरुवाण महम सीसिहि गद्देवि ॥ १७॥ गीयत्वगुणिहिं अग्गंजणीय, सुरमाणवदाणवपुत्राणीय । एकाच स मुणि कर विहार, श्रधारसहससीडंग धार ॥ १५॥ दवदंतरायरिसि गयपुरंमि, समुवागय पंवपुरवणम्मि । किरि मुत्तिमंत जगिषम्म एह, चेरग्गरंग अश्चंग देह ।। २८॥ सो पुरवारि गिय काउसगि, अरकोहिय सुरनरखवरवग्गि । मेरुव निष्पकपंगुवंग, अकोहमाण परिचससंग ॥१॥ (घात) रयवामीककिहिं परियएसक्रिहि, दिड पंचदि पंझविहिं । सो मुणिवरतरकण देश परकण वंदिय अतिपरबसिहि ॥ १२॥ कयपुग्न धन मुनिवर महंत, दवदंत रायरिसि विजयवंत । एयस्स नमसपदसण, दुरोण रिय नासखणेण ॥ १३ ॥ निस्संगसिरोमणि समासीह, मुहिमणि श्मस्स ल पढमसीह । तिए | जेम जेए परिचस रकधणपरियणसुंदररूवानका ॥ २४॥ पंचहि पंझवि किय परमन्नत्ति, श्य कनि सुणतुवि अप्पकित्ति। न वाण चित्तहमति माप, श्क काय नियमणि सुक्ककाण ॥ २५॥ चलिएसु तेसु इय मुणि धुणिसु, कोहण इत्यतर पतु । पमिमध्यि दिच तेण साहु, तमुवरि थरुच्छ सो असाहु ॥१६॥ एएण श्रम्ह अश्वजस दिछ, गढरोह करिय जयसिरीय खिलाश्य पुषवेर संजरिय चित्ति, सो बीजपूरि तामेश् कत्ति ॥२७॥ तं दधु तस्स परियण श्रसेस, सप्पतिवधमरिसविसेस | पाहायसंमिथाइप साहु, सुजावि सइइ सो निरवराहु ॥ १७ ॥ रश्वामियचखियजुहि 2.2-3
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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