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________________ उपदेश ॥ १११ ॥ जिहिं पंमियसम न सुहसत्य ॥ २ ॥ जिबकि ( डि) यकंचणकं तिमीस, कलसुखजोइदिं स्यणिदीस अंतर न मुणिक जगिरिं वीसु तं नयर त्थि इद् इत्यिसीस (सु) ॥ ३ ॥ कुंदुजालमंजुलस बल दंत, मुत्थियदी एद्दघणदाषर्दित । अमरिंदतुलनवरूत्रकंत, दवदंत तत्थ वसुमईकंत ॥ ४ ॥ जेणुझरनु (तू) यवलसादसेए, समरंगणि जित्तियत्रे रिसेण । हिम किरण रुप्प सेसुत्रेण, भूमंगल धवसिय नियजसे ॥ ए ॥ सो जरासिंधु पमिवासुदेव, संसेवण कतिहि मणुादेव । दवदंत रायगिरिहि पत्त, बहुमन्निय तेवि सिनजुन्त ॥ ६ ॥ इत्यंतरि इत्थिपुरवराड, निग्गश्चियविष नाहिए ब( ब ) राच । तसु देसुरिय पंकवेहिं, पंचहिं मंचितं ॥ ७ ॥ तं चरमाइन्निय जवेण, दवदंतन मित्रश्णा चरष । इत्थियपुर वेदिय नियमखेण, जद्द नहयल सयलुवि वद्दत्रेण ॥ ८ ॥ जाखावर पंकत्र चरमुदेश, निवसंत देस अम्द सुद्देण । उबासिय तासि न टु बलेष, तुम्हेदिं किंतु निडर उलेख ॥ ए ॥ न दु एस वीरलोयाण मग्ग, जं किकर बल कार रिसजुग्ग । तुम्हे उत्तमर्व सुप्रवाय, तत्थवि पुष पंच य पंरुवाय ॥ १० ॥ ज‍ अ परकम कोवि तुम्छ, निग्मलिय दुग्गवराज श्रम्ह संमुह श्रावेविण जुन खेडू, परिणीयचकसिरि पाय देडु ॥ ११ ॥ अवि न किंचि गयमत्थि तुम्ह, जुयकंडू खिवाच रपिदिं श्रम्ह । इय दूश्रवयति ते तकिया य, दुग्गंतरि संतिय खडिया व ॥ १२ ॥ जह भूसग मारियनए, चिति विवंतरि विग्गहे । तद् अप्पा रकिय पंकवेहिं, इत्षिणपुरग्गि निलुक्कएहिं ॥ १३ ॥ तिहिं दुग्गरोह नदिए करे वि, वाहिरनियनर बंदिहिं धरेवि । दवदंतराज नियवाणि पत्त, नयमग्गि रखा पाखर पवित्त ॥ १४ ॥ यह कब दिवसंतिरिहिं तत्थ, सिरिने मिनाद्गशहर पसत्य । सिरिधम्मघो समूरिंदचंद, जिव दरिसिय धम्मि 221 राष्ठतिका. ॥ १११ ॥
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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