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________________ उपदेश सप्ततिका. ॥१०॥ तमपाठो फुम एरिसर्वसुन्जवा नही जाया। श्रयं पुष सिमिसुङ एईए उरि नेडियो ॥ १३६ ॥ पुषनवन्नासार्ड सुगंणिकोऽवि चेव निवसंतो। नरपेयम्मि हिरिद अहह महाकम्मगरुश्चत्तं ॥ १३ ॥ अवोऽवि दोसखेसो घम्मे भईयार य जो खम्गो । अपमिकतो सो होइ गरुनदुखहरिखान ॥ १३ ॥ जं जण कयं कम तमवस्समिभस्स एश नणु उदयं । नुत्तम्मि जोयणम्मी जग्गारो पायको होइ॥१३ए॥ तथयणामयपाणा घणा जणा तरकणाच पमिबुखा । किं जखहरवुचीए तुनि दुखदइ वपराई ॥ १४ ॥ निवियनकम्मा धम्मारामं सयावि सिंचंता । बाउयमणुपूरिता पनरोऽवि दु नाषिणो बहते ॥ १४ ॥ संपत्ता मुरकसुई दुई न जत्थस्थि खेसमितमि । सिमा नापसमिशा विति सुई सयाकालं ॥ १४॥ जै पुण बहुस्सुयत्तं बर्द्ध मायाइ गारवेणऽहवा । नाखोयंतश्यारे कह ते सिवसाहगा इंति ॥ १४३ ॥ जे पुरष निस्सझमणा गुरूण पुरले कहित्तु नियदोसे । ते बाराहगनाव सहिऊण सिर्व गमिस्संति ॥ १४॥ सो सम्गे चमिन उहावि नमियाइ रागनमिऽवि । पमि न बुग्गय स इसापुत्तो मुणी जयठ ॥ १४५ ॥ विसयविरत्तो हो मिठापहमुजिक पहे खग्गो। सो श्रको निरवो सासु चंदणिजो च ॥१६॥ पवित्रमेयं परियं मुणिता, श्वासुयस्सुत्तमसंवरस्स । गयाझ्यारं जिरायधम्म, कुषंतु पावंतु सिवस्स सम्म ॥१४॥ ॥ इति श्वापुत्रचरित्रं संपूर्णम् ॥ 200 दर 4 . 1
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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