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उपदेश
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तो वेग पपुरिं निन्हगो जमालित्ति । तिचा समीवदेस पहुं जाइ निठुर गिराए ॥ २० ॥ तुम्हाणं निग्गंथा बहवे जह संति किर बमत्था । न हु तारिखो श्रहं खलु चमत्थियजावमावन्नो ॥ २५ ॥ रूप्पन्नकवल्लन्नाणदंसणवगयविस्तसजावो । अरहा जिसके लिये मुहरमुद्दे जमाखिमि ॥ ३० ॥ * गाय जयिं कत्थवि नो केवलिस्स खलु नाएं। वसंके व गिरिम्मिवि उवघायं सह लवमित्तं ॥ ३१ ॥ जड़ पुए केवल तं सयमुखविषण तो इमं मज्छ । बागरणडुगं पचासु लोए हिचे अपि वा ॥ ३२ ॥ या वा जीयो सिरिगोयमेण इय बुत्ते । संकियकं खियहिय न किंचि पनि मोणपरो ॥ ३३ ॥ ता स्वङ्कोउ॑ उक्कोयनासुरो जाव जाभिणितमोहो । वासरमम्मि उदिए सुनिप्पो सो छ हुआ ॥ ३४ ॥ तो सिरिवीरो जास पायं ससु सरिससन्नावो । बहवे मह नए सीसा बलमत्यावि हु मुति इमं ॥ ३५ ॥ न पुणो तुमं व स (ज) स्काइवाइणो जास वि (ठ) न्नवन्दिसमा । जो जो जमालि जनं (नो) कयाइ नासी तहा जव ३६ नया ं (ए) विस्स जुबि जावि नविस्सई सयावि हु जं । एस धुवे खलु निचे सासरूवे हवइ खोए ॥ ३१ ॥ निचं सree पु सप्पिएजेय मुद्दा वुत्ते । जीवो निवानिचो हावि पि न संदेहो ॥ ३० ॥ दवच्या निचो पकाएहिं पुणे ोि सो । देवत्तं मणुतं बहुं तिरिनार जवइ ॥ ३५ ॥ इय सिरिवीर गिरं सो न सद्दह वह मरमतुनं । पडुपासार्ज दूरं श्रवकम रन्नहरिणुब ॥ ४० ॥ वासाई बहुआई परमप्पाणं च मिचपंकजरे । पाकित्तु समजावं धरितु बघछमे किवा ॥ ४१ ॥
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सहतिका.
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