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________________ पञ्चस्कमेव दीसइ तं मिला कोऽपि नेत्य संदेहो। एवमिणं तन्वयम् केहिंपि दुनिबियं मुणियं ॥ १४॥ केहिं पि न सद्दहियं दहियं जह कनुनचुन्नसंमिस्स । जेहि तत्ति तवृत्ती पमिवन्ना मंदपुग्नेहिं ॥ १५ ॥ तेहिं सो चेव गुरू कर्ड पमाणं तडे पुणो भन्ने । बहुविहजुत्तीहि वियोहयंति जाहे न सो गई॥१६॥ असमंजस बुवंतो तो तं मुत्तण सामिमझीणा । अह सा सामिपसूया नियपश्नेहापुरागिला ॥१७॥ दकस्स कुजकारस्स समृगस्स परे पिया। अजाणं पसवेमाषी ढंक पिपमिबोहई॥१०॥ श्रायरि श्रम्ह फु नास न तहा पहू जण सम्मं । तो ढंकेणुत्तमिणं न बिसेसमिणं मुणामि श्रहं ॥ १ ॥ श्रह श्रन्नया कयाधि हुतीए सुत्तस्स पोरसिपराए । उजोवंतो नियजायपाणि ढंको सुसकूयरो ॥३॥ वीरपडुपहनिसेहणपराए पश्मग्गलग्गचित्ताए । इंगाखं परिकवई समुहमेई बोहकए ॥१॥ संघाभिएगदेसो दो पजए किमेयमायरियं । मह संघामी दम्वा तत्तो ढंको समुन्नत्र ॥२२॥ . जयवई तुम्ने चेव दुजणह जहा मज्माण न दुदहुं । को दद्दई पावरणं तुम्जाणं नणु निहींएयरो ।। १३ ॥ उनुसुयनयमएणं सिरिवीरमयाणुगामिसमणाणं । जुत्तमिमं खलु वुत्तं न हु पुण तुम्हाण निस्संकं ॥ २४॥ श्य तथयणायन्नणसमएंतरमेव सा तर्ज बुशश । पमिवार वीरमयं तत्ति जत्प्रेरिस वियारो ॥२५॥ अको सम्म पमिचोयणचि वुत्तूण तह य गंतूण । पत्नणे सा जमाhि सो नहु मन्ने तवयम् ॥ १६ ॥ 'वाहे सहस्सजश्वीपरिकिन्ना सामिपासमनीषा । न दुस्सुत्तपराणं सह संवासो गुणाचासो ॥२५॥ 145 464
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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