SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शाह कहहार्टऽनिगई स जामातऽम्ह गेहार्ड । अहवा चिंतारयणं कह गइ पुरे अपुग्नावं ॥ १० ॥ तो तेहिं सुआ वुत्ता करे धरित्ता कहं स नाणी तस्सासि सुमं दिना वरिसम्मैयम्मि य विवाहो ॥११॥ अह लिहिय खेहमवणीनाहो संपेसए नियं दूध । पुरविजयवशणम्मि य स रयणसेहरमहीसस्स ॥१११॥ तस्स कहिनासु सुया अम्हेहिं मयामंजरी श्रासि । दिना तुम्हंगयरयणचंदनामस्स सो इत्य ॥ ११॥ खदु पेसियवर्ड सों वीवाहो इत्थ बरे होही । इय तेण तत्थ गन्तुं कहि संदेस तस्स ॥ ११३ ॥ श्य सुणिय सो सखे उत्तरमेयं पश्वर कुमारो । तुरयारूढो केएवि अवहरि वेरिणा मज्क ॥ ११५ ।। कत्यवि तदीयवत्तावि टु नो पत्ता नरिंद श्रम्हेहिं । श्य सिरकवि दूरी विसक्रिउ तेण वेगेण ॥ ११५॥ खेहं वाश्य राया इय काय कीपहीणचित्तो सो । संसारो दु असारो रोकरमुब विन्ने ॥ ११६॥ गण्डुगेऽवि उरखं तिरके समकालमेव संपन्नं । सुयजामानश्रताने किं किजाइ कम्मवेरि पुरो ॥ ११७॥ सामा खामा काणा खुका कश्यावि कुचियकुरुवा । जाया सुया तमिरिकय सुरिकया हेमसुन्दरिया ॥ ११० ।। रायावि विम्हियमणो तेहिं दोहिनि सुंदरी पुष । तुह किमिह विसरिसाई रूबाई कुमारि दीमति ॥ ११ए। तीए उत्तं समए रहस्समय कहिस्समवियप्पं । नाणाविहरू पयासियं नणु नमीश्च ।। १२० ॥ तम्मि य व दिणे सा रत्तीए अंजणा अदिस्संगी। जमिया पश्गेइमिमा पुरे जणुत्तिं निसामंती ॥११॥ १ नानीतः. २ वर्षे एतस्मिन् 113
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy