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चन्द्रिका टोका इकनालीसा श्लोक इस दृष्टिसे विचार करने पर अवश्य ही यह कारिको व्यर्थ सिद्ध होजाती है। किन्तु कोई भी व्यक्ति भगवत्कम्प समन्तभद्रके वचनामृत रत्नाकरका गंभीर तलस्पर्शी श्रद्धालु विद्वान् इस वैयर्थ्यको स्वीकार कर सकेगा यह कथंचित् भी विश्वसनीय नहीं है अतएव सिद्ध है कि यह कारिका अवश्य ही कुछ अर्थान्तरका ज्ञापन करती है। जोकि निम्न प्रकार है:
प्रथम तो यह कि यदि यह कारिका नहीं रहती है तो उपर्युक्त शंकाओं का परिहार ग्रन्थ द्वारा होना कठिन है । सरेन्द्रता परमसाम्राज्य और तीर्थ रत्व सभी सम्यग्दृष्टियोंको प्राप्त होते ही है क्या ? अथवा सभी सबको प्राप्त होते हैं या किसी २ को कोई २४ाप्त होना है। इन प्रश्नों का उत्तर इस कारिकाके रहने से ही होता है। यह कारिका एक ही व्यक्तिको प्राप्त होनेवाले अम्यु. क्ष्यों को बताती है, इससे स्पष्ट होजाता है कि इसके पहले जो कथन किया गया है वह अवश्य ही नाना जीवों की अपेक्षासे है । फलतः मालुम होजाता है कि सभी सम्यग्दृष्टियोंके सभी परमस्थान प्राप्त ही हों यह निधन नहीं है। नियमपूर्व के कोन २ से परमस्थान और वे किस २ अवस्थायें उनको प्राप्त होते हैं यह बात आगमके द्वारा जानी जा सकती है।
दूसरी बात यह कि इन परमस्थानों से सिन २ में पूर्वापरीभाव क्रमबद्धता या कार्य कारणभाव पाया जाता है और किन २ में नहीं ? इस विषयमें आगमका जो विधान दे, उसकी तरफ भी यह कारिका संकेत करती है।
तीसरा बात यह कि-सम्बइष्टि जीवको जो ये परमस्थान प्राप्त होते हैं सो इनमें कर २ कोन २ मुख्य हैं, प्रधान हैं ? और आवश्यक है १ तथा कौन २ गौण ६१ यह कारिका इन प्रश्नोंका भी समाधान करती है।
चौथी बात यह कि यद्यापे शिवपर्यायको प्राप्त करने वालोंमें अपने निज शुद्ध स्वभाव गुणधर्मोंके विकास आदिमें परसर कोई अन्तर नहीं पाया जाता-सभी समान हैं फिर भी भवपक्ष प्रज्ञापन नयकी अपेक्षा उनमें भी अन्तर माना गया है जो कि आगममें बताया गया है उसको भी यह कारिका सूचित कर देती है।
फलतः कारिकाको व्यर्थता से निकलनेवाले इसी तरहके अनेक ज्ञापनसिद्ध अर्थ यहां संगृहीत होजाते हैं या होसकते हैं जोकि आगमके कथनके अनुकूल है । इस तरह विचार करनसे इस कारिककी असाधारण प्रयोजनबत्ता सिद्ध एवं स्पष्ट होजाती है।
अब्दों का सामान्य विशेष अर्थ--
देवेन्द्रपक्रमहिमानम्-देव इन्द्र चक्र और महिमा, इसतरह चार शब्दोंका पद एक पद है। निरुक्तिपूर्वक इस पदका अर्थ इस प्रकार करना चाहिथे । देवनाम् इन्द्राः देवेन्द्राः, तेषां चक्रम् -समूहः संघावः, तस्य महिमा-माहात्म्यम् ।।
१-क्षेत्रकालगतिलिंगठीर्षचारित्रप्रत्येकबुद्धपोधितशानावगाहनान्तरसंख्याल्पयहत्वतः साभ्याः । ब०.००१०॥