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________________ Announnar बद्रिका टीका उनतीसवा शोक शब्दके द्वारा एकही अर्थका प्रतिपादन हो सकता है यह मानलेनेपर शब्द संख्यासे अधिक अर्थोंका वे प्रज्ञापन नहीं कर सकते । शब्दोको अनेक अथों का वाचक मानलेनपर भी उनमें यह सामथ्र्य नहीं है कि वे सम्पूर्ण पदार्थों का निरूपण कर सके। यही कारण है कि पदार्थों को प्रज्ञापनीय और अप्रज्ञापनीय इस तरह दो भागोंमें विभक्त कर दिया गया है ।अनन्तानन्त पदार्थों में से सर्वाधिक भाग अप्रज्ञापनीय पदार्थीका? ही है जिनका कि स्वरूप वास्तव में शब्दके द्वारा नहीं पतापा जा सकता एसे ही पदार्थोंमें यह सम्यग्दर्शन भी है । सम्यग्दर्शनजन्य सम्पत्तियों के रूपमें जिन कार्योंका ऊपर उल्लेख किया गया है उन सबका और उनके सिवाय भी जो उसकी अनेक विशेषताएं पाई जाती और भागममें बताई गई है उन सबका किसी भी एक शब्द के द्वारा प्रतिपादन नहीं हो सकता । अतएव सम्पूर्ण विशेषताओं और कार्योको दृष्टि में रखकर यदि उसके स्वरूपका निरूपण करनेका प्रयल किया जाय तो तस्वतः उसको अनिर्वचनीय कहनेके सिवाय और कोई मार्ग नहीं है। इसके कारणों में से एक कारख यह भी है कि सम्यग्दर्शनका मुख्यतया विषय द्रग है न कि पर्याय । इसके साथ ही दूसरी चात यह कि जब कभी भी कहीं पर भी किसी भी शब्दका प्रयोग किया जाता है तब वहां जिस अर्थमें उसका प्रयोग किया गया है मूलमें पदार्थ उतना ही नहीं है। वह शब्द तो उस पदार्थक अनन्तवे अंशका ही पसाता है। यदि वही शब्द सकलादेशकी अवस्थामें सम्पूर्ण पदार्थका प्रतिपादन करता है तो पहलेका अर्थ मुख्य न रहकर गोण होजाता है। ___ इस तरह सम्यन्दर्शनके विषयकी व्यापक स्थिर स्वाभाविक अपूर्व महत्ताको लक्ष्य में लेकर ही प्राचार्यने "कापि' कहकर उसकी अनिर्वचनीयता व्यक्त की है जिससे पुण्यकर्मजन्य सम्पतियोंके गर्वसे उसकी अवहेलनामें प्रवर्तमान व्यक्ति यह समझ सके कि सुदर्शन मेरु के समक्ष पुण्य रूपी पंचपाद पशुकी ऊंचाईका अभिमान ठीक नहीं है । अथवा भुगालके द्वारा सिंहकी अवहेलना किया जाना योग्य नहीं है। यद्वा चीरसमुद्रको अपने कूएसे छोटा समझनेवाले मेढककी समझ तुच्छ है। पीली किन्तु पालिशदार होनेके कारण ही पीतल यदि सुवर्णकी अबगणना करे तो क्या योग्य होगा? नहीं। अधिक क्या जिस तरह काचरा अमृतका स्थान नहीं पासकता, धतूरा कन्पक्षकी समानता नहीं कर सकता, आकका दूध माता या गौके दूध की तुलना नहीं कर सकना, वेश्या सतीक महत्त्वको नहीं पा सकती, कौया कोयल नहीं हो सकता, बगला हंस नहीं बन सकता, गंथा घोड़ा नहीं माना जा सकता, नपुसक पुरुषका काम नहीं कर सकता, म्लेच्छ भार्य नहीं हो सकता, और जुगुनू जगत्को आलोकित नहीं कर सकता । तथा १-पगणणिजा मावा अणंतभागो दु अणभिलप्पाणं। परणबणिज्जाणं पुण अण्तभागों सुणिवशी गी०जी० ॥३३॥ २-जैसाकि भागेके वर्णनसे मालुम हो सकेगा। --पंचपार नाम ऊँटका है। यह लोकमें एक कहावत प्रसिद्ध है कि-ऊंट जब पहाडके नीचे पचता है सब उसे अपनी उचाईके अभिमानकी निःसारता मालुम होती है।
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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