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रलकररावकाचार प्रयोजन-क्रमकै अनुसार श्रद्धान क्रियाके तीसरे विशेषण अस्मयका ध्याख्यान करना आवश्य. क है। अस्मयका स्पष्ट सीधा अर्थ स्मयका निषेध है। अतएव स्मयके सम्बन्धमें प्रत्येक दृष्टिसे उसके पाथाल्यपर प्रकाश डालना आचार्यको अभिप्रेत है । इस विषयमें चारों ही अनयोगोंके हृदयको सामने रखकर भगवान् समन्तभद्र पाठकों के समक्ष स्मय की व्याख्या कर रहे हैं। मालुम होता है कि यह ग्रन्थ चरणानुयोगका है अत एव स्मयका जो सबसे पहले लवण किया गया है वह उसी राष्टिसे है। क्योंकि चारित्र व्यवहार प्रधान है। और स्मय-मानकषाय-बाईकारिक माव जिन आठ विषयों के निमित या आश्रयसे प्रवृत्त होता है उन सबके विषय सम्बन्ध को लेकर ही स्मयका लक्षण किया गया है । इसके बाद यह कब कहां किस सरहसे दोष माना जा सकता है या नहीं माना जा सकता, इस बातको स्पष्ट करनलिये दूसरी कारिका द्रव्या. नुरोग अथवा स्याद्वादगमित भनेकान्त सिद्धान्तके आधारपर का पद आदि चार पदोंका उल्लेख करके बताया है कि कौन किनका किस तरहसे किस तरहका व्यवहार करे तो वह मम्पग्दर्शन का स्मय दोष माना जा सकता है। इसके अमनर सिद्वान्त-करणानुयोग-आगमक आधार पर समयसे दूपित और निर्दोप सम्यग्दर्शनका फल बता कर पुण्योदयसे ग्राम सम्पचिकी हेयता सथा आध्यात्मिक गुण सम्पचिकी महत्ताको स्पट करदिया है। प्रद क्रमानुसार स्मयके करने न करनेका फल प्रथमानुयोग के आधार पर शान्त उपस्थित करके बता देना भी आवश्यक है। जिस तरह कोई भी तार्किक विद्वान् प्रतिभावाक्य के द्वारा पक्ष और साध्यका उल्लेख करके हेतु का प्रयोग करता है और अन्वयख्याति अथवा व्यतिरेक व्याप्तिके अनुसार अन्वय दृष्टान्त अथवा व्यतिरेक दृष्टान्त उपस्थित करके साध्यसिद्धिका समर्थन करता है उसी प्रकार प्रकृतमें समझना चाहिये।
ऊपर तीनों ही मैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक विषयों के आधारपर जो कुछ कहागया है उसी के विषयमें सत्यभृत ऐतिहासिक घटनाका स्मरण दिलाकर इस कारिकाके द्वारा यह बता देना भी आवश्यक समझा है कि धर्मात्माको ऐहिक सम्पत्तिके आश्रय से अवगणना करनेका प्रत्यक्ष फल क्या होता है एवं तत्वतः उस धर्मात्माकी महथा कितनी उच्च कोटिकी एवं आदरणीय है। क्योंकि किसी भी घटनाको देखकर तात्विक एवं सैद्धान्तिक सत्यताको प्रतीति सरलवा और सुन्दरताके साथ हो सकती है। अतएव इस कारिकाका निर्माण प्रयोजनीभूत है। ___ यद्यपि प्रथमानुयोगके विषय-दृष्टान्तका सम्बन्ध इस कारिकामें ही नहीं भागेकी कारिकामें भी पाया जाता है। फिर भी दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। यहाँ तो अन्तरंग सम्पति की महिमाको प्रधानन्या रताया गया है। और आगेकी कारिकामें इष्टानिष्ट या अनुकूल प्रतिकूल पविर्म प्राषिक फलमें ओ अन्तर है वह स्टान्त द्वारा दिखाया गया है। ___यह बात भी यहां ध्यानमें रहनी पाहिये कि भाचार्योंकी इस दृष्टान्तभित उत्तिका प्रयो· अन स्मरके विषयभ्व पूज्यता समातिल लीनता मादिका वैयध्ये दिखाना अथवा उनकी