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________________ चंद्रिका टीका प्रथम शोक समन्तभद्र स्वामीने नमस्य व्यक्तिके असाधारण गुणोंका तथा नमस्कारके कारणका उन्लेखपूर्वक जो नमस्कार किया है उससे उनकी आन्तरिक विशुद्ध श्रद्धा दर्शनविशुद्धिके साथ अईयक्तिका परिचय मिलता है। __ इस तरह के नमस्कारसे जो पापका क्षय होता है तथा पुण्यका बन्ध या बद्ध पुण्य कर्मों की स्थिति अनुभागमें प्रकर्ष हुमा करता है अथवा अशुभ कर्मो का संघर निर्जरा हुश्रा करती है उसका वर्मान करने से ग्रन्थ का विस्तार बहुत अधिक बढ़ जायगा अतएव यहां नहीं किया जाता। विद्वानोंको तो बताने की आवश्यकता भी नहीं हैं अन्य विशेषजिज्ञासुओं को ग्रन्थान्तरों से जान लेना चाहिये। श्रीवर्धनान शब्दके सम्बन्धमें पहले लिखा जा चुका है कि इसके तीन अर्थ हो सकते हैं। यह भन्तिम तीर्थकरका उनके माता पिता द्वारा जन्मसे दशवें दिन रखा गया नाम है यह बात श्री महाकनि प्रशगके वर्धमान चरित्रसे विदित होती है१ । आगममें नामकरण के सम्बन्धमें क्या विधान है यह बात श्री भगवज्जिनसेन आचार्यके श्रादिपुराण पर्व ३८ से जान लेनी चाहिये। उसका संक्षिप्त प्राशय इस प्रकार है___ उपासकाध्ययनके अनुसार क्रियाएं तीन प्रकार की बताई है, गर्भान्वय, दीक्षान्वय, मौर फत्रन्यय, जिनका कि सम्यग्दृष्टियोंको अवश्य ही पालन करना चाहिये । इनमें से गर्भान्वयके ५३ दीचान्ययक ४८ और कर्जन्वयफे ७ भेद हैं। गर्मान्वय के ५३ मेदोंमें सारावी क्रिया नामकर्मके नामसे बताई गई है। इस सम्बन्धमें लिखा कि-- द्वादशाहात्परं नामकर्म जन्मदिनान्मतम् | अनुकूले सुतस्यास्य पित्रोरपि सुखावहे ॥७॥ यथाविभवमोष्टं देवर्षि द्विजपूजनम् । शस्तं च नामधेयं तत्स्थाप्यमन्वयवृद्धिकत् ।।८८|| अष्टोत्तरसहस्राद्वा जिननामकदम्बकात् । घटपत्रविधानेन ग्राह्यमन्यतमं शुभम् ।।६॥ मतलब यह कि सातवीं नामकरण क्रिया जन्मके दिनसे बारहवें दिन होनी चाहिये । जबकि पुत्र के लिये और उसके माता पिताके लिये वह दिन सुखावह तथा अनुकूल हो-चन्द्रमा नक्षत्र भादि ग्रहयोग सब शुभ हो । इस क्रियामें अपने २ घेवके अनुसार देव ऋषि और द्विजोंका पूजन किया जाता है और जो वंशकी वृद्धि करनवाला हो ऐसा प्रशस्त नाम रख दिया जाता है। अपना घटप विधागके द्वारा भगवान् के एक हजार भाउ नामों से कोई एक शुभ नाम चुनकर रखलिया आता है। इस विधिमें चारहवें दिन नाम रखना बताया है और अशग कविने दश दिन नाम रक्खा गया लिखा है संभव है कि दशवां दिन ही पुत्र और मानाके लिये अनुकूल एवं मुखावह पडनेकर "तसंजम पसिद्धो सग्गापवम्गमगकरो। अमरासुरिंदमहदो देवोसो लोयसिहरत्यो"। तुभ्यं नमस्त्रिमुकनासिहराय नाथ ..."इत्यादि (भक्तामर) १-वर्ग १७ रनोक न०१।२-श्रीवर्धमान भगवान का जन्म क्षेत्रशुका १३ को उत्तराफाल्गुनी नामें -
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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