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कराचार
कारण दो दिन पहिलेही यह किया करली गई हो । अथवा अन्य कोई कारण है सो हमारी समझ में नहीं आया ।
वर्धमान शब्द का अर्थ २४ तीर्थंकर भी किया गया है । यह अर्थ रत्नकरण्ड श्रावकाचार के टीकाकर्ता श्री प्रभाचन्द्रने किया है। और प्राचीन आचारों के कनसे भी इस अर्थ की पुष्टि होती है । श्रीभगवजिनसेन श्राचार्यने आदिनाथ भगवान की इन्द्रद्वारा एक हजार आठ नामसे की गई जिस स्तुतिकी रचना की है उसमें भी वर्धमान इस नाम का उल्लेख मिलता है टीका टिप्पण कारोंने इस शब्दका जो अर्थ किया है वह सामान्यतया सभी तीर्थंकरोंपर घटित हो सकता है
इसके fate महापण्डित प्रशाधरजी के सहस्र नाममें भी वर्धमान नामका उल्ल ेख है और यह सहस्र नाम किसी एक तीर्थंकर को ही नहीं अपितु अनन्त श्रहन्तोंको लक्ष्य करके बनाया गया है - इसके द्वारा सामन्यतया सभी ईन्तों की स्तुति की गई है। इस वर्धमान शब्दका अर्थ टीकाकार श्री श्रुतसागर सूरीने जो किया है वह भी सामान्यतया सभी तीर्थंकरों या ईन्तों पर घटित होता है ।.
शब्द नयको दृष्टि में रखकर आगममें प्रयुक्त शब्दों के विषय में यदि विचार किया जाय तो वे प्रायः - अधिकतर योगरूढ ही मालू होते हैं । अत एव उनका अर्थ रुदि और अन्यता दोनों को ही सामने रखकर करना श्रविक संगत प्रतीत होता है। अतः विचार व रनेसे मालूम होता है अर्थ की अपेक्षा सभी तीर्थंकर या श्रईन्त वर्धमान शब्द के द्वारा कहे जाते हैं या कहे जा सकते हैं परन्तु अन्तिम तीर्थकर अर्थ की अपेक्षा साथ २ नाम निक्षेप से भी वर्धमान हैं ।
वर्धमान शब्द के साथ जो श्री शब्द लगा हुआ है उसके सम्बन्ध में दो बाते हैं-१ अश त्रिके कथन से तो मालूम होता है कि वह नामका ही एक अंश है २ परन्तु अन्य व्याख्याओं से मालूम होता है वह भगवान की असाधारण विभूतियों सूचित करने के लिये विशेषस्य रूप में प्रयुक्त हुआ है। दोनों ही अर्थ संगत हैं । इस विषय में हम पहले लिख चुके हैं अत एव यहांपर
था। इससे १०वें दिन वैसाख कूट ७ को उत्तराषाढ नक्षत्र हिसाब से आता है; और बारहवें दिन बैसाख ०६. श्रवण या धनिष्ठा नक्षत्र आता है, इनसे भगवान और उनके माता पिता के लिये कौनसी मिति नक्षत्र आदि शुभ पडते हैं, इसका विचार ज्योः तत्ता को करना चाहिये।
१- सिद्धिदः सिद्धसंकल्प सिद्धात्मा सिद्धसाधनः । बुद्धबाध्य महाबोधिवर्धमानो महर्द्धिकः । आदिपुराण २५-१४५ २ - सहस्रनाम पूजा आवि ।
३- निर्वाणादि शतक (1) श्लोक नं ६० यथा- नेमिः पार्थ्यो वर्धमानो महावीरच वीरकः ।
४- इदमष्टोत्तरं नाम्नां सहस्त्र' भक्तितोऽर्हताम् । योऽनन्तानामधीतेऽसौ मुक्त्यतां मुक्तिमनुते । आशाबर
कृत सहस्रनाम ।
५- वर्धते ज्ञानेन वैरान्देण च लक्ष्म्या द्विविधयां वर्धमानः । अथवा अत्र समन्ताद् ऋद्धः परमातिशयं प्राप्तो मानो ज्ञानं पूजा वा यस्य स वर्धमानः । आशाचर सहश्रनामका श्रुतसागर ढोका | ६- वर्धमान चरित्र स० १४९१ ।