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________________ चंद्रिका टोका उन्नीसवां बीरनगर खडे हुए छात्र की तरफ हाथ से इसारा करने लगा । छुल्लक बोला--भगवन् ! इसारा समझमें नही श्राना, आप क्या कहना चाहते हैं ? बोलते क्यों नहीं १ भव्यमेन बोला---मटो भागम में लिखा है कि अभिमानस्य रक्षार्थ प्रतीक्षार्थ श्रुतस्य च । धनन्ति मुनयो मौनमदनादिषु कर्मसु ॥ अत एव निर्जन्तु शुष्क गोमय भस्म अथवा पकी इंटका रेत लेना । छुटक-महाराज! मट्टी क्यों नहीं लेते । भव्यसेन-आगमनेत्रसे देखने योग्य सूक्ष्मजीव उसमें रहते हैं । धुवक-भगवन् । जीवका लघण ज्ञानदर्शन उपयोग है । वह इसमें कहां ? भव्यसेन,-अच्छा ठीक है, लेमा । इसी समय शुध कने विद्याके द्वारा कमंडलुका जल अदृश्य करदिया । भम्यसेन-अरे कमएडा में तो जलही नहीं है। चन्चक-यह तालाव कितना अच्छा भरा हे । मव्यसेन-प्रमासुक अखलेगा योग्य नहीं है। बुल्लक-आकाशके समान स्वच्छ इस जलमें भी जीव कहां हैं? यह सुनकर भव्यसेनने उसीस शुद्धि करली । यह सब देख परखकर खलक ने सोचा-ठीक है, इसीलिये इसका नाम मवसेन है, इसका भवसमूह बाकी है। और इसीलिये श्रीमुनिगुप्त भगवान्ने इस को बन्दना नहीं कही थी । अच्छा, रेवती रानीकी भी परीक्षा करनी चाहिये । यही सोचकर नगरके पूर्वभागमें वक्षाका रूप रखकर बैठगया । बडे बडे तपम्वी पतंग भृगु भर्ग भरत गौतम गर्ग पिंगल पुला पुलोम पुलस्ति पराशर मरीचि विरोचन श्रादि उसके चारों मुखसे निकलनेवाली चेदवाणी को सुन रहे हैं। विलामिनी सुन्दरियां चमर दोर रही है। नारद पहरा दे रहे हैं। सारा नगर दर्शन को प्रारहा है। परन्तु राजा मंत्री पुरोहितके कहने पर भी रेवती नहीं आई। उसने कहाप्रमाका अर्थ आत्मा माद ज्ञान चारित्र और वृषभदेव भगवान होता है। इनके सिवाय और कोई नया नहीं है। इसके बाद दक्षिण दिशा में विष्णु का रूप बनाकर वह बैठा । वहां भी मन आये, परन्तु रेवती न आई और उसने कहा, आगम में नव ही अर्धचक्री नारायण बताये हैं। वे सब होचुके । यह तो कोई इन्द्रजालिया है। इसी तरह पिश्चम दिशा में महादेवका पूरा रूप रखकर समस्त नगरको चुल्लकने धुन्ध करदिया फिर भी रेवती न आई । उसने कहा-रुद्र ग्यारह ही कहे हैं वे अब नहीं है। मत एव यह कोई और ही कपटवेशी है। ____ अन्त में क्षुल्लकने उत्तरदिशामें तीर्थकर का रूप रबखा, समवसरणकी पूरी रचना दिखाई। सब लोग आये। भवसेन भी आया । परन्तु रेवती न आई । उसने कहा-तीर्थकर चौबीस ही. होते हैं। ये सब हो चुके । यह वो अवश्य ही कोई उनका रूप रखनेवाला मायाचारी है। इस तरह कोई भी प्रकारसे रेवतीको विचलित न कर सकने पर वह झुनिका पेश रखकर उसके घर पर आहारकेलिये गया। रेवती ने यथाविधि आहार दिया । इस समय भी उसने भनेक तरह से उग उत्तम करनेडी चेष्टा की फिर भी वह निश्चल रही । तब स्ने निगुप्त
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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